अनुच्छेद 12 के तहत निगम एक ‘राज्य’ है, इसलिए वह संविदात्मक विवादों में भी निष्पक्ष और उचित तरीके से कार्य करने के लिए बाध्य है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आर.एस. फिलिंग स्टेशन की डीलरशिप समाप्ति के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने माना कि इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) ने मनमाने तरीके से और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए कार्रवाई की। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने रिट याचिका संख्या 4944/2023 में यह फैसला सुनाया, जो याची आर.एस. फिलिंग स्टेशन (अमित सिंह द्वारा संचालित, जिला लखीमपुर खीरी) की ओर से दायर की गई थी।

मामले का सार और फैसला

यह मामला IOCL द्वारा आर.एस. फिलिंग स्टेशन की डीलरशिप को कथित छेड़छाड़ के आधार पर समाप्त करने से जुड़ा था। अदालत ने पाया कि 12.01.2023 को पारित टर्मिनेशन आदेश और 15.05.2023 को पारित अपील आदेश न केवल प्रक्रियात्मक त्रुटियों से ग्रस्त थे, बल्कि समान मामलों में भिन्न मानकों को अपनाया गया और विशेषज्ञ रिपोर्टों पर समुचित विचार नहीं किया गया, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के विपरीत था।

पृष्ठभूमि

याची को वर्ष 2005 में खुदरा आउटलेट डीलर के रूप में नियुक्त किया गया था, और संचालन डीलरशिप एग्रीमेंटमार्केटिंग डिसिप्लिन गाइडलाइंस (MDG) के तहत हो रहा था। मई 2017 में एक सरकारी निरीक्षण दल द्वारा दो डिस्पेंसिंग यूनिट्स में कथित छेड़छाड़ पाई गई, जिसके बाद IOCL ने कारण बताओ नोटिस जारी किया और अंततः डीलरशिप समाप्त कर दी।

पक्षकारों की दलीलें

याची के अधिवक्ता ने कहा:

  • कारण बताओ नोटिस MDG की धारा 8.5.6 के तहत निर्धारित 30 दिनों की सीमा के बाहर जारी किया गया।
  • निरीक्षण के दौरान कोई शॉर्ट डिलीवरी या छेड़छाड़ नहीं पाई गई, और सीलें भी सुरक्षित थीं।
  • MIDCO OEM की स्पष्टीकरणात्मक ईमेल का उल्लेख कारण बताओ नोटिस में नहीं किया गया, फिर भी उस पर भरोसा किया गया।
  • Firozabad Fuels and Services नामक समान मामले में अपीलीय प्राधिकारी ने विपरीत निर्णय दिया, जबकि तथ्य समान थे।
  • धारा 8.7 का उल्लंघन हुआ, जो कहती है कि गैर-तेल कंपनियों द्वारा कराए गए निरीक्षणों में कार्रवाई केवल सरकारी अधिकारियों की सलाह पर ही होनी चाहिए।
  • Dresser Wayne (दूसरा OEM) ने तकनीकी परीक्षण में कोई छेड़छाड़ नहीं पाई, जबकि MIDCO की रिपोर्ट केवल दृश्य निरीक्षण पर आधारित थी।

प्रत्युत्तर में IOCL के अधिवक्ता ने कहा:

  • OEM रिपोर्ट्स में छेड़छाड़ के पर्याप्त प्रमाण हैं।
  • MDG की धारा 5.1.4 के तहत कंपनी स्वतंत्र रूप से कार्रवाई कर सकती है।
  • अपीलीय आदेशों में विरोधाभास हस्तक्षेप का आधार नहीं हो सकता क्योंकि परिस्थितियां भिन्न थीं।
  • याची को पूरा अवसर दिया गया और वह सभी प्रासंगिक दस्तावेजों से अवगत था।
READ ALSO  इलाहाबाद हाई कोर्ट का निचली अदालतों को निर्देश- एक ही दिन में गवाहों की चीफ़ और क्रॉस पूरा करने का करे प्रयास

अदालत का विश्लेषण

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने निर्णय में निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं को रेखांकित किया:

1. प्रक्रियात्मक अनियमितताएं:

  • MIDCO की स्पष्टीकरणात्मक ईमेल अत्यंत महत्वपूर्ण थी, परंतु उसे कारण बताओ नोटिस में शामिल नहीं किया गया और न ही याची को विधिक रूप से प्रदान किया गया।
  • इस ईमेल पर बिना उचित खुलासे के भरोसा करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

2. विरोधाभासी मानदंड:

  • कोर्ट ने पाया कि एक ही अपीलीय प्राधिकारी ने Firozabad Fuels मामले में विपरीत निर्णय दिया जबकि OEM रिपोर्टें समान थीं। इससे मनमानी और असमान व्यवहार स्पष्ट होता है।

3. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना:

  • सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि दोनों विशेषज्ञ रिपोर्टों पर नए सिरे से विचार किया जाए, बिना पूर्व टिप्पणियों से प्रभावित हुए। हाईकोर्ट ने पाया कि इस निर्देश का पालन नहीं हुआ।

4. MDG की धारा 5.1.4 के अंतर्गत ठोस प्रमाण की आवश्यकता:

  • इस धारा के अनुसार छेड़छाड़ ऐसी होनी चाहिए जिससे “डिलीवरी में हेराफेरी की संभावना” हो। कोर्ट ने पाया कि ऐसा कोई प्रमाण न तो प्रस्तुत किया गया और न ही आरोपित किया गया।
READ ALSO  हाईकोर्ट ने CLAT के माध्यम से डीयू में लॉ पाठ्यक्रम में प्रवेश के खिलाफ याचिका पर केंद्र, यूजीसी से विस्तृत जवाब मांगा

5. निजी अनुमान और अटकलें:

  • लाइसेंसिंग अथॉरिटी की सोच अनुमानों पर आधारित थी और रिकॉर्ड से समर्थित नहीं थी, जिससे निर्णय प्रक्रिया और भी कमजोर हो गई।

निष्कर्ष और आदेश

हाईकोर्ट ने दिनांक 12.01.2023 और 15.05.2023 के आदेशों को रद्द करते हुए याची की डीलरशिप बहाल कर दी। कोर्ट ने कहा:

“स्पष्टीकरणात्मक ईमेल जिस पर कॉर्पोरेशन ने भरोसा किया, वह पहले से उपलब्ध थी, लेकिन कारण बताओ नोटिस में उसका उल्लेख नहीं किया गया, जिससे प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ।”

साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा:

“कॉर्पोरेशन, जो अनुच्छेद 12 के तहत ‘राज्य’ की श्रेणी में आता है, उसे संविदात्मक मामलों में भी निष्पक्ष और न्यायसंगत ढंग से कार्य करना होता है… एक ही अपीलीय प्राधिकारी द्वारा अलग-अलग निष्कर्ष देना अपीलीय अधिकारों का मनमाना प्रयोग है।”

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles