इलाहाबाद हाईकोर्ट: 2 महीने के नोटिस के बिना पुलिस अधिकारी का इस्तीफा ‘त्रुटिपूर्ण’, विभाग इसे स्वीकार नहीं कर सकता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह व्यवस्था दी है कि एक पुलिस अधिकारी द्वारा दो महीने की अनिवार्य नोटिस अवधि के बिना प्रस्तुत किया गया इस्तीफा पत्र ‘त्रुटिपूर्ण’ (defective) है और विभाग द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। एक सब-इंस्पेक्टर के इस्तीफे की स्वीकृति को रद्द करते हुए, कोर्ट ने माना कि पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 9 और यू.पी. पुलिस रेगुलेशन के रेगुलेशन 505 का अनुपालन एक पूर्व-शर्त है।

जस्टिस विकास बुधवार की अदालत ने सब-इंस्पेक्टर अजीत सिंह द्वारा दायर रिट याचिका को स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही कोर्ट ने आईजीपी, मेरठ के 20.01.2018 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके द्वारा याचिकाकर्ता का इस्तीफा स्वीकार किया गया था। साथ ही, एसएसपी, मेरठ द्वारा 22.06.2022 को जारी 4,97,600 रुपये की वसूली के आदेश को भी रद्द कर दिया गया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सभी परिणामी लाभों (consequential benefits) के साथ बहाल करने का आदेश दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता अजीत सिंह को शुरू में 13.01.2010 को दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नियुक्त किया गया था। बाद में, उन्होंने उत्तर प्रदेश में 2011 की सब-इंस्पेक्टर (सिविल पुलिस) और प्लाटून कमांडर (पीएसी) की भर्ती में भाग लिया। चयन होने पर, उन्होंने दिल्ली पुलिस से तकनीकी इस्तीफा देने के बाद 31.08.2017 को यूपी पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के पद पर ज्वाइन किया।

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28.12.2017 को, याचिकाकर्ता ने आईजीपी, मेरठ रेंज को एक पत्र सौंपते हुए कहा कि स्वास्थ्य समस्याओं के कारण, वह “जॉब को करने में असमर्थ हैं” और अनुरोध किया कि उन्हें “मुक्त कर पूर्व के पद पर भेजने की कृपा करें।”

एक जांच के बाद, आईजीपी, मेरठ ने 20.01.2018 को एक आदेश के माध्यम से याचिकाकर्ता का इस्तीफा स्वीकार कर लिया। इस आदेश में यह भी निर्देश दिया गया कि उनके प्रशिक्षण और उन्हें दिए गए वेतन पर खर्च की गई राशि की वसूली की जाए।

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इसके बाद, 15.02.2018 को, याचिकाकर्ता ने आईजीपी, मेरठ को एक और आवेदन देकर अपना इस्तीफा वापस लेने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि इस्तीफा पत्र “बीमारी के दबाव में” (under the pressure of illness) दिया गया था और वह अब यू.पी. पुलिस की सेवा में बने रहना चाहते हैं।

हालांकि, 22.06.2022 को, सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (एसएसपी), मेरठ ने इस्तीफा वापस लेने के याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया और 4,97,600 रुपये की वसूली का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता ने स्वीकृति आदेश (20.01.2018) और वसूली आदेश (22.06.2022) दोनों को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता के वकील, श्री इंद्र राज सिंह ने तर्क दिया कि दोनों आदेश टिक नहीं सकते, क्योंकि वे पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 9 और यू.पी. पुलिस रेगुलेशन के रेगुलेशन 505 में निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हैं। यह दलील दी गई कि ये प्रावधान अनिवार्य करते हैं कि एक पुलिस अधिकारी का इस्तीफा दो महीने के पूर्व नोटिस के बाद ही दिया जा सकता है, और यह नोटिस बिना शर्त (unconditional) होना चाहिए।

याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि 28.12.2017 के पत्र में “दो महीने के नोटिस के बारे में एक भी शब्द नहीं लिखा था” और यह सशर्त (conditional) भी था, क्योंकि इसमें दिल्ली पुलिस में वापस शामिल होने के लिए कार्यमुक्त करने का अनुरोध किया गया था।

इसके विपरीत, राज्य की ओर से श्री एस.के. पाल, अपर मुख्य स्थायी वकील ने तर्क दिया कि एक बार जब याचिकाकर्ता ने अपना इस्तीफा दे दिया था और इसे 20.01.2018 को स्वीकार कर लिया गया था, तो उसे इसे वापस लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने बताया कि इस्तीफा वापस लेने का आवेदन 15.02.2018 को, यानी “स्वीकृति के बहुत बाद” प्रस्तुत किया गया था।

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कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष

कोर्ट ने दलीलों को सुनने और रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद, संबंधित कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण किया। जस्टिस विकास बुधवार ने पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 9 और यू.पी. पुलिस रेगुलेशन के रेगुलेशन 505 को अपने फैसले में उद्धृत किया।

फैसले में कहा गया कि इन प्रावधानों को एक साथ पढ़ने (conjoint reading) से यह स्पष्ट है कि “इस्तीफा मांगने वाले पुलिस अधिकारी पर यह कर्तव्य है कि वह अपने इस्तीफा देने के इरादे का दो महीने का नोटिस दे।”

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को स्वीकार किया कि 28.12.2017 का त्यागपत्र कानून के अनुरूप नहीं था, “क्योंकि इसमें बुनियादी घटक, जो एक पूर्व-शर्त थी, यानी दो महीने का नोटिस, वही गायब था।”

राज्य के तर्क को खारिज करते हुए, कोर्ट ने कहा: “निश्चित रूप से, एक बार इस्तीफे के लिए अनुरोध किया जाता है और उसे स्वीकार कर लिया जाता है, तो कर्मचारी पलटकर यह जोर नहीं दे सकता कि इस्तीफा वापस लिया जाए, लेकिन यहां एक विशिष्ट तथ्य है कि नोटिस ही त्रुटिपूर्ण था। एक बार जब नोटिस त्रुटिपूर्ण था और प्रावधानों के अनुरूप नहीं था… तब उस पर संज्ञान ही नहीं लिया जा सकता था।”

बेंच ने सत्य पॉल कालरा बनाम पुलिस उप महानिरीक्षक मामले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि “धारा 9 की सख्त व्याख्या के अनुसार, नोटिस इस्तीफे से पहले होना चाहिए।” कोर्ट ने दिनेश कुमार बनाम कमांडेंट 15वीं बटालियन मामले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि दो महीने की नोटिस अवधि नियोक्ता को वैकल्पिक व्यवस्था करने और कर्मचारी को “पुनर्विचार करने का अवसर” देती है।

हाईकोर्ट ने इस्तीफे की स्वीकृति में दो अन्य खामियां भी पाईं:

  1. सशर्त इस्तीफा: कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का “दिल्ली पुलिस में वापस भेजे जाने” का अनुरोध “एक सशर्त इस्तीफे का चरित्र” रखता है, जो “न तो पुलिस अधिनियम की धारा 9 और न ही पुलिस रेगुलेशन के रेगुलेशन 505 में परिकल्पित है।”
  2. देनदारी का निर्वहन (Discharge of Debt): कोर्ट ने उल्लेख किया कि रेगुलेशन 505 यह निर्दिष्ट करता है कि इस्तीफा तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता “जब तक कि उसने पूरी देनदारी का निर्वहन नहीं कर दिया हो।” इस मामले में, इस्तीफा 20.01.2018 को स्वीकार कर लिया गया था, लेकिन देनदारी (वेतन और प्रशिक्षण लागत) की वसूली का आदेश 22.06.2022 को बहुत बाद में पारित किया गया। कोर्ट ने माना, “इस प्रकार, अन्यथा भी, इस्तीफा स्वीकार नहीं किया जा सकता था।”
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अपना विश्लेषण समाप्त करते हुए, कोर्ट ने कहा, “एक अकाट्य निष्कर्ष (irresistible conclusion) निकलता है, कि इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया जा सकता था, खासकर तब जब यह कानून के प्रावधानों के अनुसार नहीं था।”

फैसला

हाईकोर्ट ने रिट याचिका को स्वीकार कर लिया और आईजीपी, मेरठ रीजन द्वारा पारित 20.01.2018 के आदेश के साथ-साथ एसएसपी, मेरठ द्वारा पारित 22.06.2022 के आदेश को भी रद्द कर दिया।

कोर्ट ने निर्देश दिया कि “याचिकाकर्ता उन सभी परिणामी लाभों का हकदार होगा, जो कानून में स्वीकार्य और अनुमेय हैं,” और यह लाभ उन्हें “आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तारीख से चार महीने की अवधि के भीतर” दिए जाएं।

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