इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका (PIL) में कथित जालसाजी, प्रतिरूपण और फर्जीवाड़े के गंभीर आरोपों की फोरेंसिक जांच का आदेश दिया है। यह आदेश याचिकाकर्ता के एक वकील के हस्ताक्षरों में प्रथम दृष्टया (prima facie) भिन्नता पाए जाने के बाद आया है।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता पर झूठा हलफनामा दायर करने के लिए मुकदमा चलाने की अर्जी पर फैसला अभी टाल दिया है। इसके बजाय, कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को मामले से जुड़े कई मूल दस्तावेजों को तुलनात्मक विश्लेषण के लिए फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL), लखनऊ भेजने का निर्देश दिया है।
यह आदेश पीआईएल संख्या 450 ऑफ 2025 (संगीता गुप्ता बनाम यूपी राज्य व 4 अन्य) में प्रतिवादी संख्या 5 द्वारा दायर एक आपराधिक विविध आवेदन पर दिया गया।
यह आवेदन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 379 के तहत याचिकाकर्ता संगीता गुप्ता पर झूठा हलफनामा देने के लिए मुकदमा चलाने की मांग करते हुए दायर किया गया था। आवेदन में आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने पीआईएल वापस लेने के लिए एक आवेदन दायर करते समय, “प्रतिवादी संख्या 5 के वकील श्री पारिजात श्रीवास्तव के जाली हस्ताक्षर किए, और धोखाधड़ी से यह दिखाया कि उन्हें (श्रीवास्तव को) निकासी आवेदन की प्रति प्राप्त हो गई है।”
प्रतिवादी संख्या 5 के आरोप
प्रतिवादी संख्या 5 ने कई गंभीर आरोप लगाए। यह दावा किया गया कि याचिकाकर्ता के वकील, श्री अशरफ अली, “एक फर्जी पहचान हैं” जिन्हें एक अन्य वकील “श्री अमित प्रताप सिंह (‘ए.पी. सिंह’)” द्वारा “गलत मंसूबों” के लिए बनाया गया है। यह भी आरोप लगाया गया कि दोनों वकील “एक ही आवासीय पता और फोन नंबर दिखाते हैं।”
हलफनामे में कहा गया कि ए.पी. सिंह और प्रतिवादी संख्या 5 के बीच एक अलग दीवानी विवाद (मूल वाद संख्या 25 ऑफ 2021) चल रहा है और ए.पी. सिंह का “कई आपराधिक मामलों का इतिहास” है।
एक प्रमुख आरोप प्रतिरूपण का था। प्रतिवादी ने दावा किया कि कोर्ट के आदेशों के बावजूद, अशरफ अली “अदालत में पेश होने से बचते रहे,” और “केवल ए.पी. सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मोड के माध्यम से खुद को अशरफ अली बताते हुए पेश हुए।”
एक जवाबी हलफनामे (rejoinder affidavit) में, प्रतिवादी संख्या 5 ने कहा कि उनके वकील, श्री पारिजात श्रीवास्तव, “याचिकाकर्ता सुश्री संगीता गुप्ता से कभी नहीं मिले,” और इसलिए निकासी आवेदन की प्रति प्राप्त करने का कोई अवसर ही नहीं था। यह जोर दिया गया कि श्री श्रीवास्तव के हस्ताक्षर “जाली और मनगढ़ंत” थे।
याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता संगीता गुप्ता ने आरोपों का खंडन करते हुए एक आपत्ति (objection) दायर की। उन्होंने तर्क दिया कि उन्होंने “स्वयं निकासी आवेदन की प्रति श्री पारिजात श्रीवास्तव को दी थी और उन्होंने स्वयं इसे प्राप्त किया था।”
कोर्ट के समक्ष पेश होकर, सुश्री संगीता गुप्ता (याचिकाकर्ता), श्री ए.पी. सिंह और श्री अशरफ अली (अधिवक्ता) ने “फर्जी पहचान” के आरोपों को गलत बताया और कहा कि उनके पास अपनी पहचान का सबूत है। उन्होंने एक ही पते और फोन नंबर की व्याख्या करते हुए कहा कि “दोनों एक ही घर में रहते हैं और उनके बीच मकान मालिक-किरायेदार का संबंध है।”
कोर्ट का विश्लेषण और प्रथम दृष्टया निष्कर्ष
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह इस स्तर पर पीआईएल के गुण-दोष पर नहीं, बल्कि “केवल बीएनएसएस की धारा 379 के तहत आवेदन के गुण-दोष पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।”
पीठ ने पिछली सुनवाइयों के कई आदेशों का उल्लेख किया। 20 अगस्त, 2025 के एक आदेश में प्रतिवादी के वकील की यह दलील दर्ज की गई थी कि “पिछली तारीख पर, कोई अन्य व्यक्ति पेश हुआ था और उसने कहा था कि वह अशरफ अली है और, अब, एक अलग व्यक्ति पेश हो रहा है, जो खुद को अशरफ अली बता रहा है।” उस तारीख पर, कोर्ट ने “खुद को अशरफ अली बताने वाले” व्यक्ति को ऑर्डर-शीट पर हस्ताक्षर करने का निर्देश दिया था।
रिकॉर्ड्स की जांच करने पर, कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की: “20.08.2025 को ऑर्डर-शीट के हाशिये पर ‘अशरफ अली’ या अशरफ अली होने का दावा करने वाले के हस्ताक्षर किए गए… उक्त हस्ताक्षर रिट याचिका के साथ-साथ निकासी आवेदन पर ‘ए. अली’ के रूप में किए गए हस्ताक्षरों से स्पष्ट रूप से भिन्न हैं।”
“प्रतिरूपण, जालसाजी, और इस कार्यवाही में शामिल या पेश होने वाले व्यक्तियों की पहचान” के आरोपों पर विचार करने के बाद, कोर्ट ने कहा कि वह “प्रथम दृष्टया, संतुष्ट” है कि “याचिकाकर्ता (संगीता गुप्ता) के वकील के रूप में अशरफ अली के हस्ताक्षर इस कार्यवाही में अलग-अलग दस्तावेजों पर अलग-अलग तरीके से किए गए हैं।”
पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि “मामले को फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (‘FSL’) को संदर्भित करके अशरफ अली के हस्ताक्षरों की जांच का निर्देश देना उचित है।”
कोर्ट के निर्देश
हाईकोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- रजिस्ट्रार जनरल चार मूल दस्तावेज—(क) मूल रिट याचिका, (ख) मूल निकासी आवेदन, (ग) 19.08.2025 की ऑर्डर-शीट का मूल पृष्ठ जिस पर कथित हस्ताक्षर हैं, और (घ) श्री पारिजात श्रीवास्तव का मूल वकालतनामा—FSL, लखनऊ को भेजेंगे।
- FSL को इन सभी दस्तावेजों पर ‘अशरफ अली’/’ए. अली’ के हस्ताक्षरों की “वैज्ञानिक रूप से तुलना और सत्यापन” करने का निर्देश दिया गया है, ताकि यह पता चल सके कि ये हस्ताक्षर एक ही व्यक्ति द्वारा किए गए हैं या नहीं।
- FSL को निकासी आवेदन पर श्री पारिजात श्रीवास्तव के कथित हस्ताक्षर की तुलना उनके वकालतनामे पर किए गए हस्ताक्षर से भी करनी होगी।
- FSL को दस्तावेज प्राप्त होने के एक महीने के भीतर एक सीलबंद लिफाफे में अपनी स्पष्ट रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया गया है।
मामले को अगली सुनवाई के लिए 6 जनवरी, 2026 को सूचीबद्ध किया गया है।




