इलाहाबाद हाई कोर्ट, लखनऊ बेंच ने एक अहम फैसले में उत्तर प्रदेश राज्य सचिवालय के पूर्व अतिरिक्त निजी सचिव अमर सिंह की बर्खास्तगी को खारिज कर दिया। सिंह को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा पर जातिवाद के आरोप लगाने वाले व्हाट्सएप संदेश को गलती से फॉरवर्ड करने के कारण बर्खास्त किया गया था। कोर्ट ने इसे अनुपातहीन और प्रक्रिया में खामियों वाला कदम बताया और उनकी सेवा को निरंतरता के साथ बहाल करने का निर्देश दिया।
पृष्ठभूमि
यह मामला (रिट – ए नं. 9071/2024, अमर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) 2018 की घटना से जुड़ा है। अमर सिंह, जो एक व्हाट्सएप समूह के प्रशासक थे, ने गलती से सरकार की जाति आधारित नियुक्तियों पर आलोचना करने वाला एक आपत्तिजनक संदेश फॉरवर्ड कर दिया। सिंह ने दावा किया कि यह गलती से हुआ और वह संदेश को हटाने का प्रयास कर रहे थे।
गलती का एहसास होने पर, सिंह ने तुरंत समूह के सदस्यों से संदेश को डिलीट करने का अनुरोध किया और स्वेच्छा से उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से माफी मांगी। इसके बावजूद, उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई और 7 सितंबर 2020 को उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियम, 1956 के तहत कथित कदाचार के आरोप में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
कानूनी मुद्दे
मामले में मुख्य रूप से दो कानूनी प्रश्न उठे:
- प्रक्रियागत न्याय: क्या तकनीकी समिति द्वारा की गई जांच उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन और अपील) नियम, 1999 का पालन करते हुए की गई थी?
- सजा की अनुपातिकता: क्या एक अनजाने कृत्य के लिए बर्खास्तगी उचित थी, जब जानबूझकर कदाचार या नुकसान का कोई सबूत नहीं था?
कोर्ट की टिप्पणियां
जस्टिस आलोक माथुर ने जांच प्रक्रिया में कई गंभीर खामियां पाईं:
- प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: तकनीकी समिति द्वारा जांच बिना अमर सिंह को सूचित किए या उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिए की गई। कोर्ट ने इसे डिसिप्लिन एंड अपील नियम के नियम 7 का उल्लंघन माना, जो संरचित और पारदर्शी जांच प्रक्रिया को अनिवार्य बनाता है।
- सबूतों की अनुपस्थिति: कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार यह साबित करने में विफल रही कि फॉरवर्ड किए गए संदेश को व्हाट्सएप समूह में पढ़ा या प्रसारित किया गया था। अनुशासनात्मक प्राधिकरण केवल सिंह की स्वीकृति पर निर्भर रहा, जो जानबूझकर कदाचार को प्रमाणित करने के लिए अपर्याप्त था।
- अनुपातहीन सजा: कोर्ट ने सजा की अनुपातिकता के सिद्धांत पर जोर दिया और कहा कि एक अनजाने कृत्य के लिए बर्खास्तगी “चौंकाने वाली रूप से अनुपातहीन” है और यह निष्पक्षता के मानकों के अनुरूप नहीं है। फैसले में कहा गया कि लापरवाही या ईमानदार गलती को गंभीर कदाचार नहीं माना जा सकता, जिसके लिए अधिकतम दंड दिया जाए।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “दंड का निर्धारण साबित हुए कदाचार की गंभीरता के अनुरूप होना चाहिए। जब अपराध मामूली या अनजाने में हो, तो कठोर दंड देना निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है।”
निर्णय
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया और अमर सिंह की सेवा को निरंतरता के साथ बहाल करने का निर्देश दिया। हालांकि, कोर्ट ने इस अवधि के लिए बकाया वेतन देने से इनकार कर दिया। अदालत ने प्रशासनिक निर्णयों में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और सजा की अनुपातिकता का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया।