इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव (Resolution) पेश किया है, जिसके तहत उन वकीलों के प्रैक्टिस लाइसेंस को निलंबित करने का निर्णय लिया गया है जिनकी पुलिस हिस्ट्रीशीट खुली हुई है या जो पुलिस रिकॉर्ड में गैंगस्टर के रूप में दर्ज हैं। इसके साथ ही, कोर्ट ने राज्य पुलिस को निर्देश दिया है कि वकीलों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की पूरी सूची थाना-वार (police station-wise) प्रस्तुत की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी जानकारी छिपाई न गई हो।
यह मामला न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ के समक्ष मोहम्मद कफील बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (याचिका संख्या 12231 वर्ष 2025) में सुनवाई के लिए आया था। कोर्ट वकीलों के आपराधिक इतिहास और बार काउंसिल द्वारा की जा रही अनुशासनात्मक कार्रवाई की समीक्षा कर रही थी।
बार काउंसिल का प्रस्ताव
सुनवाई के दौरान, उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के अधिवक्ता श्री अशोक कुमार तिवारी ने वकालतनामा दाखिल किया और उन अधिवक्ताओं की सूची सौंपी जिनके खिलाफ बार काउंसिल के समक्ष अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित है।
महत्वपूर्ण रूप से, श्री तिवारी ने रेजोल्यूशन नंबर 2300 ऑफ 2024, दिनांक 29 सितंबर, 2024 को रिकॉर्ड पर रखा। कोर्ट के आदेश के अनुसार, इस प्रस्ताव में बार काउंसिल द्वारा सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है कि “जिन अधिवक्ताओं के खिलाफ पुलिस ने हिस्ट्रीशीट खोल रखी है और जो पुलिस रिकॉर्ड में गैंगस्टर के रूप में दर्ज हैं, उनका प्रैक्टिस लाइसेंस (Licence of Practise) निलंबित कर दिया जाएगा।”
बार काउंसिल के अधिवक्ता ने कोर्ट में चर्चा किए गए अन्य दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर लाने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। उन्हें अगली सुनवाई पर उन अधिवक्ताओं का विवरण वाली एक पेन ड्राइव भी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है जिन्हें ‘सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस’ जारी किया गया है।
राज्य का अनुपालन और कोर्ट के निर्देश
राज्य की ओर से विद्वान अतिरिक्त महाधिवक्ता (A.A.G.) ने 15 दिसंबर, 2025 का अनुपालन हलफनामा दाखिल किया, जिसमें वकीलों के खिलाफ दर्ज मामलों की जिलेवार सूची प्रदान की गई थी।
इस अनुपालन पर गौर करते हुए, न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने वकीलों के खिलाफ आपराधिक मामलों के डेटा की सटीकता और पूर्णता सुनिश्चित करने के लिए कड़े निर्देश जारी किए। कोर्ट ने निर्देश दिया कि “सभी थाना प्रभारी (Station House Officers), संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों (SSP) के माध्यम से, एक अंडरटेकिंग (undertaking) दाखिल करेंगे जिसमें यह कहा जाएगा कि पूर्व के आदेशों के अनुपालन में इस कोर्ट को मामलों की पूरी सूची प्रस्तुत कर दी गई है।”
इस अंडरटेकिंग में स्पष्ट रूप से यह बताया जाना चाहिए कि “कोई भी महत्वपूर्ण तथ्य छिपाया नहीं गया है; और उनके संबंधित पुलिस थानों में किसी भी अधिवक्ता के खिलाफ पहले से बताए गए मामलों के अलावा कोई अन्य मामला लंबित नहीं है।” कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि एक नई सूची ‘थाना-वार’ प्रस्तुत की जाए।
कोर्ट ने राज्य के हलफनामे और बार काउंसिल के प्रस्ताव को रिकॉर्ड पर लिया है। मामले को 18 दिसंबर, 2025 को बोर्ड के अंत में एक फ्रेश केस के रूप में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया है।
केस डिटेल्स:
- केस का शीर्षक: मोहम्मद कफील बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
- केस संख्या: मैटर्स अंडर आर्टिकल 227 नंबर 12231 ऑफ 2025
- कोरम: न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर
- याची के अधिवक्ता: श्री अनूप त्रिवेदी
- प्रतिवादी के अधिवक्ता: श्री कमलूद्दीन खान (शासकीय अधिवक्ता), श्री अशोक कुमार तिवारी (बार काउंसिल ऑफ यू.पी.)

