इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ट्रायल कोर्ट के फैसले में ‘आंशिक अंग्रेजी और आंशिक हिंदी’ के बेतरतीब इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताई है। कोर्ट ने ऐसे फैसले को “एक उत्कृष्ट उदाहरण” बताते हुए कहा कि कुछ पंक्तियाँ तो “आधी हिंदी और आधी अंग्रेजी में” लिखी पाई गईं।
न्यायमूर्ति अजय कुमार-II और न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की खंडपीठ ने यह माना कि यह प्रथा द्विभाषी प्रणाली (bilingual system) के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देती है। हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले की एक प्रति उत्तर प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारियों को परिचालित (circulate) करने और पूरे मामले को माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष “वर्तमान मामले में वांछनीय कार्रवाई हेतु” प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
यह महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ 29 अक्टूबर, 2025 के एक फैसले में की गईं, जब खंडपीठ एक आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी। यह अपील आगरा की एक निचली अदालत द्वारा दहेज हत्या (धारा 304-बी) और क्रूरता (धारा 498-ए) के आरोपों से एक व्यक्ति को बरी करने के खिलाफ दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने बरी करने के फैसले को तो गुण-दोष के आधार पर बरकरार रखा, लेकिन ट्रायल कोर्ट द्वारा लिखे गए फैसले की भाषा और संरचना पर यह गंभीर टिप्पणियाँ कीं।
हाईकोर्ट की विस्तृत टिप्पणियाँ
माननीय न्यायमूर्ति अजय कुमार-II द्वारा लिखे गए इस फैसले में, हाईकोर्ट ने नोट किया कि ट्रायल कोर्ट का आदेश “आंशिक रूप से अंग्रेजी और आंशिक रूप से हिंदी में फैसला लिखने का एक उत्कृष्ट उदाहरण” था।
पीठ ने फैसले का विश्लेषण करते हुए निम्नलिखित आंकड़े प्रस्तुत किए:
“यह फैसला 54 पृष्ठों का है जिसमें कुल 199 पैराग्राफ हैं। 63 पैराग्राफ अंग्रेजी में हैं, 125 हिंदी में हैं और शेष 11 पैराग्राफ दोनों भाषाओं में हैं।”
कोर्ट ने इस पर और अधिक चिंता व्यक्त करते हुए कहा:
“जिन 11 पैराग्राफों में हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का उपयोग किया गया है, उनमें आश्चर्यजनक रूप से कुछ पंक्तियाँ आधी हिंदी और आधी अंग्रेजी में हैं।”
हिंदी में निर्णय का उद्देश्य
हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में अधीनस्थ अदालतों की भाषा के संबंध में आधिकारिक नियमों और उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश एक “हिंदी भाषी राज्य” है।
अदालती फैसलों को हिंदी में लिखने का मुख्य उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कोर्ट ने कहा:
“इसलिए, उत्तर प्रदेश राज्य में हिंदी में निर्णय लिखने का मूल उद्देश्य यह है कि आम वादी अदालत द्वारा लिखे गए फैसले को समझ सके और साथ ही अदालत द्वारा उसके दावे को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए दिए गए कारणों को भी समझ सके।”
पीठ ने माना कि भाषाओं को इस प्रकार मिलाने की प्रथा इस उद्देश्य को “विफल” कर देगी, क्योंकि “सिर्फ हिंदी जानने वाला एक आम व्यक्ति, ट्रायल जज द्वारा अंग्रेजी में लिखे गए फैसले में दिए गए कारणों और तर्कों को नहीं समझ पाएगा।”
‘द्विभाषी प्रणाली’ का स्पष्टीकरण
हाईकोर्ट ने 1951 के एक सरकारी पत्र (G.L. No. 8/X-e-5) का जिक्र करते हुए “द्विभाषी प्रणाली” की व्याख्या की। कोर्ट ने कहा कि यह प्रणाली पीठासीन अधिकारियों को “या तो हिंदी में या अंग्रेजी में” अपने निर्णय लिखने की स्वतंत्रता देती है।
हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि इसका अर्थ “यह नहीं लगाया जा सकता कि एक फैसला आंशिक रूप से अंग्रेजी और आंशिक रूप से हिंदी में लिखा जाए”।
पीठ ने इसका अपवाद (exception) भी समझाया। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई निर्णय हिंदी में लिखा जा रहा है और न्यायिक अधिकारी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले के अंश को उद्धृत (quote) करना चाहते हैं, तो वे निश्चित रूप से अंग्रेजी में उस हिस्से को उद्धृत कर सकते हैं। लेकिन, ऐसी स्थिति में, “संबंधित पीठासीन अधिकारी का यह दायित्व है कि वह, जैसी भी स्थिति हो, उसका हिंदी से अंग्रेजी या अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद प्रदान करे।”
हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देश
इन टिप्पणियों के समापन में, पीठ ने इस प्रथा को सुधारने की उम्मीद जताते हुए एक व्यापक निर्देश जारी किया:
“हमें उम्मीद और विश्वास है कि उत्तर प्रदेश राज्य के सभी न्यायिक अधिकारी, जैसा कि ऊपर देखा गया है, अपने निर्णय या तो हिंदी में या अंग्रेजी में लिखेंगे। इस निर्णय की एक प्रति रजिस्ट्रार (अनुपालन) के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य के सभी न्यायिक अधिकारियों को परिचालित की जाए।”
इसके अतिरिक्त, पीठ ने निर्देश दिया कि इस फैसले की एक प्रति, ट्रायल कोर्ट के फैसले के साथ, “माननीय मुख्य न्यायाधीश” के समक्ष “वर्तमान मामले में वांछनीय कार्रवाई करने हेतु” प्रस्तुत की जाए।




