व्यक्तिगत स्वायत्तता और कानूनी अनुपालन को संतुलित करने वाले एक महत्वपूर्ण निर्णय में, इलाहाबाद हाईकोर्ट, लखनऊ पीठ ने POCSO अधिनियम के तहत आरोपी एक व्यक्ति को अंतरिम जमानत दी है, इस शर्त के अधीन कि वह विशेष विवाह अधिनियम के तहत अभियोक्ता से विवाह करेगा। यह निर्णय न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने आपराधिक विविध जमानत आवेदन संख्या 11293/2024 में दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
आवेदक 22 जुलाई, 2024 से न्यायिक हिरासत में है, क्योंकि उस पर आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 366 (विवाह के लिए मजबूर करने के लिए अपहरण) और 376 (बलात्कार) के साथ-साथ POCSO अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत मामला अपराध संख्या 67/2024 में आरोप लगाया गया था। मामला कोतवाली टांडा पुलिस स्टेशन, जिला अंबेडकर नगर में दर्ज किया गया था।
आरोप आवेदक की अभियोक्ता से शादी से जुड़े हैं, जिसने दावा किया कि उसने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार स्वेच्छा से उससे विवाह किया है। इस अंतरधार्मिक विवाह ने उसके परिवार को आपत्तियों में डाल दिया और आपराधिक कार्यवाही शुरू कर दी।
कोर्टरूम में मुख्य घटनाक्रम
आवेदक का प्रतिनिधित्व वकील द्वारा किया गया, जबकि राज्य का प्रतिनिधित्व सरकारी अधिवक्ता (जी.ए.) द्वारा किया गया। अदालत ने अभियोक्ता के बयानों पर ध्यान दिया, जो एक पूरक हलफनामे में प्रस्तुत किए गए थे, जिसमें आवेदक के साथ उसकी स्वैच्छिक शादी और उसके साथ रहने की इच्छा का दावा किया गया था। वह वर्तमान में लखनऊ के एक सरकारी आश्रय गृह, राज बालिका गृह में रहती है, जिसमें उसके अंतरधार्मिक विवाह के लिए पारिवारिक प्रतिरोध का हवाला दिया गया है।
कानूनी मुद्दे
1. अभियोक्ता की आयु:
जबकि अभियोक्ता ने जोर देकर कहा कि वह 18 वर्ष की है, अंबेडकर नगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने उसकी रेडियोलॉजिकल आयु 16 से 17 वर्ष के बीच बताई। उसकी आयु की पुष्टि करने के लिए शैक्षिक रिकॉर्ड की कमी ने मामले को और जटिल बना दिया।
2. विशेष विवाह अधिनियम के अनुपालन के बिना अंतरधार्मिक विवाह की वैधता:
विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया था, जो अभियोजन पक्ष के अनुसार, अंतरधार्मिक विवाह के लिए कानूनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है। सरकार ने तर्क दिया कि ऐसे विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत किए जाने चाहिए।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और अंतरिम ज़मानत की शर्तें
अभियोक्ता की स्वायत्तता को स्वीकार करते हुए, न्यायमूर्ति चौहान ने टिप्पणी की कि कानून को वैधानिक प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए व्यक्तिगत विकल्पों की रक्षा करनी चाहिए। इस संदर्भ में, न्यायालय ने निम्नलिखित शर्तों के साथ चार महीने के लिए अंतरिम ज़मानत दी:
1. आवेदक को कानूनी वैधता सुनिश्चित करने के लिए विशेष विवाह अधिनियम के तहत अभियोक्ता से विवाह करना चाहिए।
2. विवाह के बाद, जोड़े को संबंधित अधिकारियों के साथ अपने मिलन को पंजीकृत करना होगा और 2 अप्रैल, 2025 तक न्यायालय को सबूत देना होगा।
3. अभियोक्ता की हिरासत तब तक राज बालिका गृह के पास रहेगी जब तक आवेदक इन शर्तों को पूरा नहीं कर लेता।
4. आवेदक को मुकदमे की कार्यवाही में सहयोग करना चाहिए और अन्य जमानत शर्तों का पालन करना चाहिए, जैसे कि 20,000 रुपये का बांड और दो जमानतदार प्रस्तुत करना।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया, “आवेदक को विशेष विवाह अधिनियम के तहत अभियोक्ता से विवाह करने की स्वतंत्रता दी जाती है ताकि उसके भविष्य के अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।” इसने अधिकारियों को निर्देश दिया कि जब तक जमानत की शर्तें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक अभियोक्ता की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
पक्षों के बयान
अभियोक्ता ने विवाह के लिए अपनी सहमति दोहराई और आवेदक के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की। अदालत में मौजूद उसके पिता ने कहा कि उन्होंने उसके साथ संबंध तोड़ लिए हैं, लेकिन उसके फैसले पर आपत्ति नहीं जताई।
बचाव पक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि अभियोक्ता के बयान और विवाह के साथ आगे बढ़ने की उसकी इच्छा, उसके वयस्क होने के दावे को देखते हुए, POCSO अधिनियम के तहत आरोपों को नकारती है।