इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में ‘शंकर पार्वती छाप’ नाम से तंबाकू उत्पाद की ब्रांडिंग को लेकर दायर जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को जनहित याचिका के बजाय उचित कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से अपनी शिकायत का निवारण करना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने आदर्श कुमार द्वारा दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि धार्मिक भावनाओं की रक्षा के नाम पर इस जनहित याचिका को स्वीकार करने का कोई वैध कारण नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता को आपत्ति है, तो वह उचित कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला जनहित याचिका संख्या 491/2025 के तहत दायर किया गया था, जिसमें एक तंबाकू निर्माता (प्रतिवादी संख्या 4) को ‘शंकर पार्वती छाप’ नाम से बीड़ी बेचने और धार्मिक प्रतीक चिन्हों का उपयोग करने से रोकने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता, जो अधिवक्ता गणेश मणि त्रिपाठी द्वारा प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने तर्क दिया कि हिंदू देवी-देवताओं, शंकर और पार्वती, के नाम का उपयोग तंबाकू उत्पादों की बिक्री के लिए करना धार्मिक भावनाओं का अपमान है और इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश राज्य सरकार, जिसकी ओर से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता (A.C.S.C.) ए.के. गोयल पेश हुए, ने इस याचिका का विरोध किया। राज्य सरकार ने तर्क दिया कि कानून के किसी स्पष्ट उल्लंघन का प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है और यह मामला जनहित याचिका के माध्यम से न्यायिक हस्तक्षेप का विषय नहीं है।
अदालत के समक्ष प्रमुख कानूनी प्रश्न
इस मामले में दो महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न उठे:
- क्या केवल धार्मिक भावनाएं आहत होने के आधार पर जनहित याचिका दायर की जा सकती है?
- क्या धार्मिक नामों का व्यावसायिक ब्रांडिंग में उपयोग करना मौजूदा कानूनों के तहत अपराध की श्रेणी में आता है?
अदालत का निर्णय और टिप्पणियां
याचिका में उठाए गए बिंदुओं की समीक्षा के बाद, हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से जनहित याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि इस तरह के आरोपों को जनहित का मुद्दा बनाकर नहीं उठाया जा सकता, बल्कि इसके लिए विधिक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
अदालत ने अपने निर्णय में महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
“हम इस याचिका को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करने का कोई आधार नहीं पाते हैं। यदि याचिकाकर्ता को कोई आपत्ति है, तो उसे कानून के अनुसार उचित कदम उठाने चाहिए।”
इस आधार पर, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ता को अन्य कानूनी उपायों का सहारा लेने की स्वतंत्रता दी, यदि कानून इसकी अनुमति देता है।