इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अधिवक्ता द्वारा पिता की हाल ही में मृत्यु होने का झूठा बहाना बनाकर बार-बार स्थगन (adjournment) मांगने के मामले में उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने माना कि अधिवक्ता श्री शिव प्रकाश का यह आचरण पेशेवर दुर्व्यवहार (professional misconduct) की श्रेणी में आता है और अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत कार्रवाई योग्य है।
यह मामला दो जुड़े हुए रिट याचिकाओं—रिट-सी संख्या 6782/2025 और रिट-सी संख्या 6739/2025—की सुनवाई के दौरान उठा, जो गोहर एवं अन्य दो व्यक्तियों द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य तीन प्रतिवादियों के विरुद्ध दायर की गई थीं। याचिकाओं में 10 मई 2018 को खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम की धारा 51 के तहत मोरादाबाद के अपर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश, तथा 12 सितंबर 2024 को खाद्य सुरक्षा अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता श्री शिव प्रकाश व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हुए और उनकी ओर से उनके जूनियर अधिवक्ता ने बार-बार यह कहते हुए स्थगन मांगा कि अधिवक्ता के पिता का हाल ही में निधन हो गया है। इस आधार पर कोर्ट ने 7 मार्च 2025 को मामला स्थगित किया और अगली सुनवाई के लिए 12 मार्च 2025 की तारीख निर्धारित की।

हालाँकि, अगली सुनवाई की तारीख पर राज्य की ओर से उपस्थित अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता श्री संजय सिंह ने इस बार-बार किए गए स्थगन पर आपत्ति जताई। कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि श्री शिव प्रकाश की उत्तर प्रदेश बार काउंसिल में पंजीकरण संख्या 8345/2013 के अनुसार वे स्व. श्याम लाल तिवारी के पुत्र हैं और उनके पिता का निधन उनके वकालत के पेशे में आने से पूर्व ही हो चुका था।
कोर्ट द्वारा बुलाए जाने पर श्री शिव प्रकाश दस मिनट बाद उपस्थित हुए और पूछताछ करने पर उन्होंने स्वीकार किया कि उनके पिता का देहांत उनकी वकालत शुरू करने से पहले ही हो गया था। कोर्ट ने पाया कि अधिवक्ता ने जानबूझकर कोर्ट को गुमराह किया और स्थगन प्राप्त किया, जबकि उसी समय वे एक समन्वय पीठ (co-ordinate bench) के समक्ष उपस्थित हो रहे थे।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने आदेश पारित करते हुए टिप्पणी की:
“श्री शिव प्रकाश, अधिवक्ता, जानबूझकर न्यायालय से बचते रहे और अपने पिता की मृत्यु का बहाना बनाकर मामले को स्थगित करवाते रहे… अधिवक्ता ने अनुचित आचरण किया और झूठा स्थगन प्राप्त किया, जबकि वे समन्वय पीठ के समक्ष उपस्थित थे। उनका यह आचरण इस न्यायालय के अधिवक्ता के लिए शोभनीय नहीं है।”
कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह मामला उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को सौंपा जाए, जो श्री शिव प्रकाश से स्पष्टीकरण मांगकर अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत दो महीने की अवधि के भीतर उचित कार्रवाई सुनिश्चित करे।
अंत में, कोर्ट ने रिट याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया:
“पक्षकारों के अधिवक्ताओं को सुनने और अभिलेखों पर मौजूद सामग्री का परीक्षण करने के बाद मैं पाता हूँ कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, चुनौती दिए गए आदेशों में हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं बनती।”
कोर्ट ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को आदेश दिया कि इस आदेश की प्रति 48 घंटे के भीतर उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को भेज दी जाए।