POCSO केस में आरोपी को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत, उम्र सत्यापन में व्यवस्थागत खामियों पर जताई चिंता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गड़वार थाना, जनपद बलिया में दर्ज प्राथमिकी संख्या 197/2024 में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 137(2), 61(2), 65(1) तथा POCSO अधिनियम की धारा 3/4(2) के अंतर्गत आरोपी अमरजीत पांडेय को जमानत प्रदान की है। न्यायालय ने इस आदेश के दौरान उम्र सत्यापन और चिकित्सकीय आधारभूत ढांचे की गंभीर खामियों पर विशेष चिंता व्यक्त की।

मामला क्या है

FIR पीड़िता के पिता द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी 16 वर्षीय बेटी 10 सितंबर 2024 को कॉलेज के लिए निकली थी, लेकिन वापस नहीं लौटी। आरोप था कि आरोपी अमरजीत पांडेय ने एक अन्य सह-आरोपी के साथ मिलकर लड़की को बहला-फुसलाकर भगाया।

आवेदक पक्ष की दलीलें

आवेदक के अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि अमरजीत पांडेय को झूठे मामले में फंसाया गया है। FIR दर्ज कराने में चार दिन की देरी हुई, जिसका कोई संतोषजनक कारण नहीं दिया गया। पीड़िता ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 183 के तहत दिए गए बयान में आरोपी से प्रेम होने और शादी के वादे पर स्वेच्छा से गुजरात जाने की बात कही। धारा 180 के तहत दिए गए बयान में उसने अपनी उम्र 18 वर्ष बताई और कहा कि माता-पिता की डांट के कारण वह घर से निकली थी।

न तो कोई चिकित्सकीय चोट का प्रमाण मिला और न ही किसी प्रकार की जबरदस्ती का संकेत। आरोपी का आपराधिक इतिहास भी नहीं था।

राज्य पक्ष की प्रतिक्रिया

राज्य सरकार ने जमानत याचिका का विरोध किया, लेकिन आरोपी के आपराधिक इतिहास न होने की बात से इंकार नहीं किया

न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने Niranjan Singh v. Prabhakar Rajaram Kharote (AIR 1980 SC 785) के हवाले से कहा कि ट्रायल को प्रभावित करने से बचने के लिए साक्ष्यों पर विस्तृत टिप्पणी से परहेज किया जाना चाहिए।

साथ ही Satender Kumar Antil v. CBI (2022 INSC 690) और Manish Sisodia v. Directorate of Enforcement (2024 INSC 595) के निर्णयों का हवाला देते हुए कोर्ट ने दोहराया:

“जमानत एक नियम है और जेल अपवाद।”

न्यायालय ने कहा:

“भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति का जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार तभी छीना जा सकता है जब अपराध सिद्ध हो जाए।”

कोर्ट ने पाया कि आरोपी के खिलाफ कोई पूर्व आपराधिक मामला नहीं है, और पीड़िता ने खुद को बालिग (18 वर्ष) बताया है। पीड़िता गुजरात गई और वहाँ रही लेकिन किसी प्रकार की आपत्ति नहीं जताई। न ही किसी शारीरिक उत्पीड़न का प्रमाण मिला।

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अस्थि परीक्षण (Ossification Test) और व्यवस्थागत खामियाँ

कोर्ट ने 10 फरवरी 2025 को अस्थि परीक्षण कराने का आदेश दिया था, लेकिन प्रशासनिक लापरवाहियों के कारण यह परीक्षण नहीं हो सका। पीड़िता को एक्स-रे के लिए ले जाया गया, लेकिन मुख्य चिकित्साधिकारी (CMO) ने उसके गैर-हाजिर रहने के कारण रिपोर्ट जारी करने से मना कर दिया। बाद में पता चला कि पीड़िता कोलकाता में अपनी बुआ के पास है, फिर बताया गया कि वह हिमाचल प्रदेश में रह रही है

कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताई:

“प्रशासनिक सुस्ती और लालफीताशाही का यह रवैया स्पष्ट है। इस कारण, भारी मन से, कोर्ट को अस्थि परीक्षण की रिपोर्ट के बिना ही जमानत याचिका पर निर्णय देना पड़ रहा है।”

न्यायमूर्ति पहल ने व्यवस्थागत खामियों की ओर संकेत किया:

  • जन्मतिथि की हेराफेरी: मुकदमों में कृत्रिम रूप से बालिग को नाबालिग दिखाने की प्रवृत्ति, जिससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित होती है।
  • उम्र सत्यापन में पुलिस की विफलता: किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 94 का पालन नहीं करना, खासकर जब दस्तावेज़ उपलब्ध न हों।
  • स्वास्थ्य सेवा का अभाव: बलिया जिले में रेडियोलॉजिस्ट की अनुपस्थिति, जिससे अस्थि परीक्षण समय पर नहीं हो सका।
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न्यायालय की सिफारिशें

  • किशोर न्याय अधिनियम की धारा 94 का पुलिस द्वारा सख्ती से पालन किया जाए।
  • बलिया जिले में तुरंत रेडियोलॉजिस्ट की नियुक्ति की जाए।

अदालत का निर्णय

कोर्ट ने जमानत याचिका मंजूर करते हुए आदेश दिया कि अमरजीत पांडेय को निजी मुचलके और दो जमानतदारों के आधार पर रिहा किया जाए, निम्नलिखित शर्तों के साथ:

  • सबूतों के साथ छेड़छाड़ न करें।
  • सुनवाई की प्रमुख तारीखों पर उपस्थिति अनिवार्य होगी।
  • शर्तों के उल्लंघन पर जमानत रद्द की जा सकती है।

कोर्ट ने आदेश की एक प्रति प्रमुख सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश को भेजने के निर्देश भी दिए।

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