इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन शिकायतों को गंभीरता से लिया है जिनमें यह आरोप लगाया गया है कि विवेचना अधिकारी अदालत में काउंटर हलफनामा दाखिल करने के लिए वादकारियों से पैसे मांगते हैं। मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) को निर्देश दिया कि वे प्रदेश के सभी पुलिस अधिकारियों को इस प्रकार की प्रवृत्ति से दूर रहने के स्पष्ट निर्देश जारी करें।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कमलेश मिश्रा और एक अन्य द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान की। याचिकाकर्ताओं के वकील ने अदालत को बताया कि मामले के विवेचना अधिकारी मधुसूदन वर्मा ने सुबह 11:47 बजे एक पक्षकार को फोन कर ₹3,000 की मांग की ताकि वह काउंटर हलफनामा दाखिल कर सकें।
वकील ने यह भी बताया कि इस प्रकार की मांगें एक सामान्य प्रथा बन चुकी हैं, जहां पुलिस अधिकारी सीधे पक्षकारों से संपर्क कर प्रक्रिया से जुड़ी कार्यवाही के लिए धनराशि मांगते हैं। जब इस संबंध में अदालत में पूछताछ हुई, तो IO मधुसूदन वर्मा ने फोन करने की बात स्वीकार की लेकिन पैसे मांगने से इनकार करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ जानकारी के लिए फोन किया था। उन्होंने एक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर इन आरोपों को निराधार और पुलिस विभाग की छवि को धूमिल करने की साजिश बताया।
कोर्ट ने अधिकारी के स्पष्टीकरण को असंतोषजनक मानते हुए टिप्पणी की, “व्यक्तिगत हलफनामे में लिया गया यह रुख IO के आचरण की व्याख्या नहीं करता।” न्यायमूर्ति कुमार ने इस प्रकार की प्रवृत्ति को “अत्यंत निंदनीय” करार देते हुए मामले को उचित जांच के लिए डीजीपी को सौंप दिया।
हाईकोर्ट ने डीजीपी को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि सभी पुलिस कर्मियों को एक स्पष्ट परिपत्र के माध्यम से निर्देशित किया जाए कि वे किसी भी मामले में अदालत से संबंधित दस्तावेजों की कार्यवाही के लिए पक्षकारों से धन की मांग न करें। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया है।