वैदिक रीति से आयोजित हिंदू विवाह में स्थान अप्रासंगिक: इलाहाबाद हाईकोर्ट

एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि दो हिंदुओं के बीच विवाह का स्थान इसकी वैधता को प्रभावित नहीं करता है, बशर्ते कि यह वैदिक या अन्य प्रासंगिक हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार आयोजित किया गया हो। यह फैसला तब आया जब अदालत ने दहेज की मांग से संबंधित एक आपराधिक मामले से संबंधित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें जोर दिया गया कि आर्य समाज मंदिरों में किए गए हिंदू विवाह उचित धार्मिक रीति-रिवाजों के तहत किए जाने पर वैध माने जाते हैं।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने महाराज सिंह के मामले की अध्यक्षता की, जिन्होंने बरेली के हाफिजगंज पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी। सिंह ने तर्क दिया कि आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र जाली था, और विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार नहीं किया गया था।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज विनीत सरन को BCCI का एथिक्स ऑफिसर नियुक्त किया गया है

याचिकाकर्ता के वकील ने एक पूर्व निर्णय (आशीष मोरया बनाम अनामिका धीमान) का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी विवाह का केवल पंजीकरण ही उसकी वैधता का निर्णायक सबूत नहीं है। हालांकि, न्यायमूर्ति देशवाल ने स्पष्ट किया कि आर्य समाज मंदिर आमतौर पर वैदिक प्रक्रियाओं का पालन करते हैं, जिसमें हिंदू रीति-रिवाज और संस्कार जैसे ‘कन्यादान’, ‘पाणिग्रहण’, ‘सप्तपदी’ और मंत्रोच्चार शामिल हैं, जो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 के तहत आवश्यक हैं।

Video thumbnail

अदालत ने आगे कहा कि आर्य समाज से प्राप्त विवाह प्रमाणपत्र वैधानिक रूप से वैध नहीं हो सकता है, लेकिन इसे अमान्य नहीं माना जाना चाहिए। भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए), 2023 के प्रावधानों के तहत विवाह कराने वाले ‘पुरोहित’ या पुजारी द्वारा परीक्षण के दौरान ऐसे प्रमाणपत्रों की पुष्टि की जा सकती है।

READ ALSO  किसी महिला को 'अवांछित गर्भधारण' जारी रखने के लिए मजबूर करना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles