इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह ग्रामीण स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए एक ठोस और व्यावहारिक तंत्र तैयार करे। न्यायालय ने कहा कि गांवों के स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे गरीब तबके से आते हैं और जब शिक्षक स्कूल नहीं पहुंचते, तो सबसे अधिक नुकसान इन्हीं बच्चों का होता है।
न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी की एकलपीठ ने यह निर्देश शिक्षक इंद्रा देवी की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। इंद्रा देवी, बांदा ज़िले के पैलानी स्थित एक संकुल विद्यालय में शिक्षिका हैं। उन्हें जिला अधिकारी की औचक जांच के दौरान अनुपस्थित पाए जाने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से शिक्षकों की उपस्थिति पर प्रभावी नियंत्रण व्यवस्था न होने से गरीब बच्चों के शिक्षा के संवैधानिक अधिकार पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। अदालत ने यह भी याद दिलाया कि उसने 16 अक्तूबर को राज्य सरकार को शैक्षणिक संस्थानों में उपस्थिति पर नज़र रखने के लिए एक “व्यावहारिक नीति” तैयार करने का निर्देश दिया था।
राज्य सरकार की ओर से स्थायी अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि सरकार के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में इस विषय पर बैठक हो चुकी है।
इसके बाद 30 अक्तूबर को दिए गए आदेश में अदालत ने कहा, “तकनीकी युग में शिक्षकों की उपस्थिति को नियमों और अधिनियमों में निर्धारित समय के अनुसार वर्चुअल/इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दर्ज किया जाना चाहिए।”
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि मामूली देरी को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है, लेकिन “आदतन अनुपस्थिति को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।”
मामले की अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी, जब राज्य सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह अपने द्वारा उठाए गए ठोस कदमों की जानकारी न्यायालय को दे।




