इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि सीतापुर जिले में प्राथमिक विद्यालयों की “पेयरिंग नीति” पर 21 अगस्त तक यथास्थिति (status quo) बनाए रखी जाए।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश मास्टर नितीश कुमार और धर्मवीर की ओर से उनके अभिभावकों द्वारा दाखिल दो विशेष अपीलों पर सुनवाई करते हुए पारित किया। ये अपीलें 7 जुलाई के एकल न्यायाधीश के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थीं जिसमें राज्य सरकार की 16 जून की “विद्यालय पेयरिंग” योजना को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं।
अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को पास के अन्य स्कूलों में विलय करना राइट टू एजुकेशन एक्ट, 2009 के तहत “पड़ोस के स्कूल” के सिद्धांत का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत शिक्षा के अधिकार का भी हनन है।

सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि एकल न्यायाधीश ने राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत कुछ ऐसे दस्तावेजों पर भरोसा किया था जो रिकॉर्ड में नहीं थे। राज्य सरकार ने बाद में उन्हें हलफनामे के साथ प्रस्तुत किया, जिसके बाद पीठ ने अपीलकर्ताओं से अगली सुनवाई तक उन पर जवाब दाखिल करने को कहा।
हालांकि, पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश फिलहाल नीति की वैधता या उसकी खूबियों पर कोई टिप्पणी नहीं है।
राज्य सरकार की यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों के अनुरूप बताई जा रही है, जिसका मकसद कम छात्रों वाले स्कूलों को पास के अन्य स्कूलों के साथ मिलाकर संसाधनों का एकीकरण और शिक्षा व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाना है। प्रदेश के 1.3 लाख सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में से अब तक 10,000 से अधिक स्कूलों की पेयरिंग की जा चुकी है।
हालांकि, इस नीति का विपक्षी दलों और शिक्षा अधिकार कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि इससे ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों के बच्चों की स्कूल तक पहुंच प्रभावित हो सकती है।
अब यह मामला 21 अगस्त को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।