इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने लापता व्यक्तियों के मामलों में उत्तर प्रदेश के अधिकारियों के “लापरवाह और गैर-जिम्मेदाराना रवैये” (Casual and Cavalier Attitude) की कड़ी आलोचना की है। जुलाई 2024 से लापता अपने बेटे की तलाश के लिए एक पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, कोर्ट ने पाया कि पुलिस तंत्र केवल तभी हरकत में आया जब हाईकोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया, वह भी प्रारंभिक शिकायत के लगभग डेढ़ साल बाद।
न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन और न्यायमूर्ति श्रीमती बबीता रानी की खंडपीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रमुख सचिव (गृह) को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने उनसे नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वेबसाइट पर अपलोड की गई गुमशुदगी की शिकायतों से निपटने के लिए अपनाए जाने वाले प्रोटोकॉल को स्पष्ट करने के लिए कहा है।
मामले की पृष्ठभूमि
याची विक्रमा प्रसाद ने पुलिस की निष्क्रियता से क्षुब्ध होकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। क्रिमिनल मिसलेनियस रिट पिटीशन संख्या 11291 वर्ष 2025 के माध्यम से याची ने बताया कि उनका 32 वर्षीय बेटा जुलाई 2024 में राज्य की राजधानी लखनऊ से लापता हो गया था। इस संबंध में उन्होंने 17 जुलाई 2024 को गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
कोर्ट ने अपने आदेश में नोट किया कि रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद मामला “ठंडे बस्ते” में चला गया और अधिकारियों ने याची की शिकायत के निवारण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। पुलिस की इस उदासीनता से परेशान होकर पिता ने 27 नवंबर 2025 को वर्तमान रिट याचिका दायर की।
दलीलें और राज्य का पक्ष
राजधानी से एक व्यक्ति के लापता होने की घटना को गंभीरता से लेते हुए, कोर्ट ने इससे पहले 1 दिसंबर 2025 को पुलिस आयुक्त, लखनऊ से व्यक्तिगत हलफनामा मांगकर जांच में हुई प्रगति की जानकारी मांगी थी।
17 दिसंबर 2025 को हुई सुनवाई के दौरान, अपर शासकीय अधिवक्ता (AGA) ने पुलिस आयुक्त द्वारा दाखिल हलफनामे का हवाला देते हुए कोर्ट को बताया कि:
- अंततः 2 दिसंबर 2025 को भारतीय न्याय संहिता (B.N.S.), 2023 की धारा 137(2) के तहत एफआईआर संख्या 0690/2025 दर्ज कर ली गई है।
- लापता व्यक्ति को खोजने के प्रयास अब शुरू कर दिए गए हैं।
- प्रभारी निरीक्षक, पुलिस थाना चिनहट, लखनऊ ने लापता व्यक्ति की तस्वीरें प्राप्त करने, उन्हें विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शित करने, समाचार पत्रों में नोटिस प्रकाशित करने और दूरदर्शन व रेडियो के माध्यम से जानकारी प्रसारित करने के निर्देश जारी किए हैं।
जब कोर्ट ने यह पूछा कि सामान्यतः गुमशुदगी की शिकायतों से कैसे निपटा जाता है, तो एजीए ने स्वीकार किया कि “शिकायतें वेबसाइट पर अपलोड कर दी जाती हैं, और उसके बाद, वे तब तक वेबसाइट पर पड़ी रहती हैं जब तक कि कोर्ट के आदेश या किसी अन्य माध्यम से कोई दबाव नहीं दिया जाता।”
कोर्ट की टिप्पणी और विश्लेषण
खंडपीठ ने अधिकारियों के आचरण पर गहरा असंतोष व्यक्त करते हुए इस याचिका को “अधिकारियों के लापरवाह रवैये का एक क्लासिक उदाहरण” करार दिया।
कोर्ट ने कहा कि आधिकारिक तंत्र ने एफआईआर दर्ज करने और खोज के प्रयास शुरू करने की जहमत तभी उठाई जब 1 दिसंबर 2025 को कोर्ट ने हस्तक्षेप किया। यह कार्रवाई गुमशुदगी की शिकायत दर्ज होने के लगभग डेढ़ साल बाद की गई।
शिकायतों को केवल अपलोड करने की प्रक्रिया पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा:
“यह कार्रवाई लापता व्यक्तियों को खोजने में राज्य के अधिकारियों के उदासीन रवैये को दर्शाती है… यह केवल वर्तमान याचिका के माध्यम से ही इस न्यायालय के संज्ञान में आया है कि गुमशुदगी की शिकायत को केवल अधिकारियों की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाता है, और उसके बाद, कोई कार्रवाई तब तक नहीं की जाती जब तक कि न्यायालय के आदेश द्वारा कुछ करने की आवश्यकता न हो।”
पीठ ने आगे कहा कि एक कल्याणकारी राज्य से ऐसे आचरण की अपेक्षा नहीं की जाती है, जहां नागरिक को उस कार्य को शुरू करवाने के लिए राज्य के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़े, जिसे अधिकारियों को स्वयं अपने स्तर पर करना चाहिए था।
निर्णय और निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव (गृह) को तीन सप्ताह के भीतर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। हलफनामे में निम्नलिखित बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई है:
- याची द्वारा जुलाई 2024 में दर्ज कराई गई गुमशुदगी की शिकायत पर क्या कार्रवाई की गई?
- 1 जनवरी 2024 से अब तक एनसीआरबी (NCRB) की वेबसाइट पर कितनी गुमशुदगी की रिपोर्ट अपलोड की गई हैं, और उनमें से कितने मामलों का निस्तारण किया गया या व्यक्तियों को खोजा गया?
- एनसीआरबी की वेबसाइट पर शिकायत अपलोड होने के बाद अधिकारियों द्वारा क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है?
- क्या शिकायतकर्ता को रिपोर्ट की स्थिति के बारे में कोई जानकारी भेजी जाती है, और यदि हां, तो किस आवृत्ति (frequency) पर यह जानकारी दी जाती है?
कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल नहीं किया जाता है, तो प्रमुख सचिव (गृह) को रिकॉर्ड के साथ कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर सहायता करनी होगी।
मामले की अगली सुनवाई 29 जनवरी 2026 को सूचीबद्ध की गई है।
केस विवरण:
- केस शीर्षक: विक्रमा प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
- केस संख्या: क्रिमिनल मिसलेनियस रिट पिटीशन संख्या 11291 वर्ष 2025
- कोरम: न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन और न्यायमूर्ति श्रीमती बबीता रानी
- याची के अधिवक्ता: ओंकार पांडेय, आनंद कुमार सिंह
- प्रतिवादी के अधिवक्ता: जी.ए. (सरकारी अधिवक्ता)

