धोखाधड़ी या दबाव से नहीं, स्वेच्छा और आस्था से किया गया इस्लाम धर्मांतरण ही वैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक हालिया फैसले में कहा है कि इस्लाम धर्म में परिवर्तन तभी वैध और वास्तविक माना जाएगा जब वह एक वयस्क और मानसिक रूप से सक्षम व्यक्ति द्वारा पूरी तरह स्वेच्छा, आस्था और विश्वास के आधार पर किया गया हो। यह टिप्पणी अदालत ने एक बलात्कार और उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत दर्ज अवैध धर्मांतरण के मामले में कार्यवाही रद्द करने की याचिका को खारिज करते हुए दी।

न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने स्पष्ट किया कि जबरन, प्रलोभन, धोखाधड़ी, गलत प्रस्तुति या अनुचित प्रभाव के माध्यम से कराया गया कोई भी धर्म परिवर्तन विधिक रूप से मान्य नहीं हो सकता। 27 मार्च को पारित आदेश में अदालत ने कहा, “इस्लाम धर्म में परिवर्तन तभी वास्तविक माना जाएगा, जब व्यक्ति बालिग हो, मानसिक रूप से सक्षम हो, और स्वयं की इच्छा तथा अल्लाह की एकता और पैगंबर मोहम्मद की पैगंबरियत पर विश्वास के आधार पर धर्म अपनाए।”

READ ALSO  अदालतों के पास किसी भी निरोध आदेश के निष्पादन से पहले शिकायतों पर विचार करने की आवश्यक शक्ति है: हाईकोर्ट

यह मामला तौफीक अहमद से जुड़ा था, जिन्होंने अपने खिलाफ चल रही कानूनी कार्यवाही को रद्द कराने की मांग की थी। उनका तर्क था कि उन्होंने पीड़िता से समझौता कर लिया है। यह मामला जून 2021 की एक शिकायत पर आधारित था, जिसमें आरोप था कि अहमद ने ‘राहुल उर्फ मोहम्मद अयान’ के नाम से फेसबुक पर पीड़िता से दोस्ती की, अपनी असली पहचान छुपाई, और विवाह के लिए उसे इस्लाम धर्म अपनाने के लिए बाध्य किया। साथ ही उस पर यौन शोषण का भी आरोप था।

न्यायमूर्ति चौहान ने बलात्कार जैसे गंभीर अपराध पर अदालत की सख्त दृष्टिकोण को भी दोहराया और कहा कि इस प्रकार के अपराध, जो महिला की गरिमा और सम्मान को गहरे स्तर पर प्रभावित करते हैं, उनके संबंध में कोई भी समझौता अदालत को स्वीकार्य नहीं है। आदेश में कहा गया, “बलात्कार जैसे अपराध के संबंध में कोई भी समझौता, जो महिला के सम्मान और आत्मसम्मान को गहरा आघात पहुंचाता है, इस अदालत के लिए स्वीकार्य नहीं है।”

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वन विभाग खुद वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 33 को लागू करके हर्जाना नहीं लगा सकता है

अदालत ने यह भी दोहराया कि उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध कानून का उद्देश्य ऐसे धर्मांतरण को रोकना है जो व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता को धोखे या दबाव के माध्यम से प्रभावित करता है। कोर्ट के अनुसार, वैध धर्मांतरण वही माना जाएगा जो सच्चे मन से, नए धर्म के सिद्धांतों पर विश्वास करके किया गया हो, न कि किसी दबाव या लालच में आकर।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles