पंचायत चुनाव कार्य के लिए ठेकेदार को ₹74.99 लाख देने के सिविल कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरकरार रखा

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उप ज़िला निर्वाचन अधिकारी (पंचायत), लखीमपुर खीरी और एक अन्य द्वारा दाखिल पहली अपील को खारिज कर दिया है। इस अपील में सिविल कोर्ट द्वारा पंजाब टेंट हाउस को पंचायत चुनाव 2000 के दौरान प्रदान की गई सेवाओं के लिए ₹74,99,120 की राशि तथा 6% वार्षिक ब्याज देने के फैसले को चुनौती दी गई थी।

यह अपील सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 96 के अंतर्गत दाखिल की गई थी, जिसमें दिनांक 19 फरवरी 2016 को सिविल जज (सीनियर डिवीजन), लखीमपुर खीरी द्वारा सिविल वाद संख्या 40/2004 में दिए गए निर्णय को चुनौती दी गई थी। ट्रायल कोर्ट ने ठेकेदार के पक्ष में निर्णय दिया था।

पृष्ठभूमि:

4 जून 2000 को चुनाव से संबंधित सामग्री एवं सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए निविदा आमंत्रित की गई थी, जिसे पंजाब टेंट हाउस को प्रदान किया गया। 11 जून 2000 को औपचारिक वर्क ऑर्डर जारी हुआ। ठेकेदार ने ₹82,99,120 के बिल प्रस्तुत किए, जिसमें से केवल ₹8,05,690 की राशि का भुगतान किया गया। शेष ₹74,99,120 की वसूली के लिए पंजाब टेंट हाउस ने धारा 80 सीपीसी के अंतर्गत विधिक नोटिस जारी कर 18% वार्षिक ब्याज सहित सिविल वाद दायर किया।

अपीलकर्ताओं की दलीलें:

अपीलकर्ताओं का कहना था कि राज्य निर्वाचन आयोग, उ.प्र. के उप आयुक्त द्वारा 18 जनवरी 2000 को लिखे गए पत्र में ठेकेदार को अधिकतम ₹11,25,000 तक भुगतान की सीमा निर्धारित की गई थी, जिसे ट्रायल कोर्ट ने नज़रअंदाज़ किया।

उन्होंने आगे यह भी तर्क दिया:

  • बिलों का सत्यापन कनिष्ठ अभियंता द्वारा और बीडीओ द्वारा अनुमोदन आवश्यक था, जो नहीं किया गया।
  • वादी एक स्वामित्व फर्म है, और आदेश 30 नियम 1, 3, एवं 10 सीपीसी के तहत मुकदमा दायर करने के लिए सक्षम नहीं है।
  • धारा 80 सीपीसी के तहत जारी नोटिस, धारा 80(3)(a) व (b) की अनिवार्य शर्तों का पालन नहीं करता।

न्यायालय का विश्लेषण:

न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद चार मुद्दों पर निर्णय निर्धारित किया।

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₹11.25 लाख की सीमा के मुद्दे पर न्यायालय ने कहा:

“दिनांक 04.06.2000 की निविदा में किसी भी प्रकार की यह शर्त नहीं थी कि अधिकतम भुगतान ₹11,25,000 होगा… इस सीमा को निर्धारित करने वाला पत्र निविदा का हिस्सा नहीं था, अतः उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।”

न्यायालय ने Ramana Dayaram Shetty vs International Airport Authority of India, (1979) 3 SCC 489 तथा Venkataraman Krishnamurthy vs Lodha Crown Buildmart Pvt. Ltd., (2024) 4 SCC 230 का हवाला देते हुए दोहराया कि पक्षकारों के बीच अनुबंध की शर्तें ही प्रभावी होंगी, बाह्य पत्राचार नहीं।

बिलों के प्रमाणीकरण के संबंध में न्यायालय ने पाया:

“सभी बिल कनिष्ठ अभियंता द्वारा प्रमाणित एवं बीडीओ द्वारा अनुमोदित हैं… अतः यह आधार भी अपीलकर्ताओं द्वारा अस्वीकृत किया जाता है।”

स्वामित्व फर्म द्वारा वाद दायर करने की वैधता पर न्यायालय ने स्पष्ट किया:

“सीपीसी के आदेश 30 का नियम 1 साझेदारियों पर लागू होता है, स्वामित्व फर्म पर नहीं… अतः यह आधार भी खारिज किया जाता है।”

धारा 80 सीपीसी नोटिस की वैधता पर न्यायालय ने कहा:

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“नोटिस में वादी का नाम, विवरण, निवास एवं वाद का कारण स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है… प्रतिवादियों की लिखित उत्तर में केवल नग्न खंडन किया गया है, कोई स्पष्ट विवरण नहीं दिया गया।”

न्यायालय ने आदेश 8 नियम 2 सीपीसी का हवाला देते हुए कहा कि खंडन विशेष रूप से किया जाना चाहिए, जिसे अपीलकर्ता करने में असफल रहे।

इन सभी आधारों में कोई दम न पाते हुए न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया और ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड वापस करने का निर्देश दिया।

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