इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार की स्कूल पेयरिंग नीति के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली और फैसला सुरक्षित रख लिया। यह नीति उन प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को आसपास के अन्य स्कूलों के साथ जोड़ने से संबंधित है जिनमें छात्रों की संख्या 50 से कम है।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने कृष्णा कुमारी और अन्य द्वारा दायर दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई पूरी की। याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार के 16 जून 2024 के शासनादेश को रद्द करने की मांग की है, जिसके तहत उक्त नीति लागू की गई थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता एल.पी. मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी कि यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत बच्चों को प्राप्त निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है। उनका कहना था कि इस नीति के कारण बच्चों को अपने मोहल्ले से बाहर स्कूल जाना पड़ेगा, जिससे समावेशी शिक्षा की मूल भावना प्रभावित होगी।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि सरकार को कम नामांकन वाले स्कूलों को बंद करने की बजाय उनके बुनियादी ढांचे और शिक्षण गुणवत्ता को बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए। याचिकाकर्ताओं का कहना था, “सरकार ने बच्चों के कल्याण की तुलना में आर्थिक सुविधा को प्राथमिकता देते हुए आसान रास्ता अपनाया है।”
राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुडेसीया, प्रमुख स्थायी अधिवक्ता शैलेन्द्र सिंह और वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने नीति का समर्थन करते हुए कहा कि यह निर्णय नियमों के अनुसार लिया गया है और न तो अवैध है और न ही मनमाना।
राज्य की ओर से कहा गया कि यह स्कूलों को बंद करने या मर्ज करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि संसाधनों के बेहतर उपयोग हेतु एक प्रशासनिक व्यवस्था है। “कई स्कूलों में छात्रों की संख्या नगण्य या शून्य थी,” सरकार के वकीलों ने तर्क दिया, और कहा कि इस पुनर्गठन का उद्देश्य शिक्षा की पहुंच को प्रभावित किए बिना जनशक्ति और संसाधनों का युक्तिकरण है।
सुनवाई के दौरान एक संबंधित घटनाक्रम में, अनुज कुडेसीया ने अदालत से अनुरोध किया कि इस मामले की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाई जाए, क्योंकि इससे सरकारी अधिवक्ताओं की छवि प्रभावित हो रही है। न्यायमूर्ति भाटिया ने यह अनुरोध अस्वीकार कर दिया और कहा कि न्यायपालिका प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक नहीं लगाएगी; ऐसा कोई भी नियंत्रण केवल विधायी माध्यम से ही संभव है।
अब इस मामले में अदालत के फैसले की प्रतीक्षा की जा रही है।