इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘कॉपी-पेस्ट’ अपीलीय आदेश को छिपाने के लिए भ्रामक व्यक्तिगत हलफनामा (Personal Affidavit) दायर करने पर राज्य जीएसटी (State GST) अधिकारी को कड़ी फटकार लगाई है। जस्टिस पीयूष अग्रवाल की बेंच ने अधिकारी के आचरण पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए शुरू में मामले को आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt) बेंच के समक्ष रखने का निर्देश दिया था, लेकिन बाद में राज्य सरकार के अनुरोध पर एक अंतिम अवसर प्रदान कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एडबुलेवार्ड मीडिया प्राइवेट लिमिटेड (Adboulevard Media Private Limited) द्वारा दायर एक रिट याचिका से संबंधित है, जिसमें अपर आयुक्त, ग्रेड-2 (अपील) प्रथम, राज्य कर, मेरठ द्वारा पारित अपीलीय आदेश को चुनौती दी गई थी।
याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए आरोप लगाया कि अपीलीय प्राधिकारी ने बिना उचित कारण बताए उनका जीएसटी रिफंड आवेदन खारिज कर दिया। याची के वकील ने दलील दी कि विवादित आदेश ‘कॉपी-पेस्ट’ पद्धति का परिणाम है, क्योंकि इसमें किसी अन्य पक्ष से संबंधित पैराग्राफ शामिल थे। इसके अलावा, आदेश में उस कर अवधि (अक्टूबर 2024 से जनवरी 2025) के तथ्यों का हवाला दिया गया था जो विवाद में ही नहीं थी, जबकि वास्तविक रिफंड दावा अप्रैल 2024 से जून 2024 की अवधि से संबंधित था।
हलफनामे को लेकर विवाद
इन आरोपों को गंभीरता से लेते हुए, हाईकोर्ट ने पहले संबंधित अधिकारी को अपना व्यक्तिगत हलफनामा दायर कर अपने आचरण को स्पष्ट करने का निर्देश दिया था।
10 दिसंबर, 2025 को दायर एक व्यक्तिगत हलफनामे में, अधिकारी ने कहा कि “किसी भी कॉपी-पेस्ट पद्धति का उपयोग नहीं किया गया है”। हालांकि, कोर्ट ने आदेश का अवलोकन करने पर पाया कि इसमें विवादित अवधि से असंबंधित मामले उद्धृत किए गए थे, जो प्रथम दृष्टया यह दर्शाता है कि आदेश बिना विवेक का प्रयोग किए पारित किया गया।
इसके बाद, 16 दिसंबर, 2025 को अधिकारी ने आदेश को सही ठहराने का प्रयास करते हुए एक और हलफनामा दायर किया। इस हलफनामे के पैराग्राफ 9 में, अधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा कि अपीलीय आदेश भारत सरकार के सर्कुलर संख्या 230/24/2024-GST दिनांक 10 सितंबर, 2024 पर “उचित विचार” (Due Consideration) करने के बाद पारित किया गया था।
कोर्ट की टिप्पणी और विश्लेषण
18 दिसंबर, 2025 को सुनवाई के दौरान, जस्टिस पीयूष अग्रवाल ने अधिकारी के दावे की जांच वास्तविक आदेश से की।
कोर्ट ने पाया कि प्रॉपर ऑफिसर (Proper Officer) की रिपोर्ट को उद्धृत करने के अलावा, अपीलीय आदेश में “सर्कुलर के बारे में एक शब्द भी नहीं” था। जब कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता (Additional Advocate General) से पूछा कि क्या आदेश में ‘विचार करने पर’ (on consideration) जैसा कोई शब्द या सर्कुलर का कोई संदर्भ मिल सकता है, तो उन्होंने स्वीकार किया कि अधिकारी ने केवल प्रॉपर ऑफिसर की रिपोर्ट को उद्धृत किया है और उनकी समझ कमजोर है।
जस्टिस अग्रवाल ने विभाग की कार्यप्रणाली पर तीखी टिप्पणी की:
“यह जीएसटी विभाग की कार्यप्रणाली को दर्शाता है। अधिकारियों में न केवल गलत (perverse) आदेश पारित करने का साहस है, बल्कि वे कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश करते हुए अपना व्यक्तिगत हलफनामा भी दाखिल करते हैं कि आदेश उचित विचार के बाद पारित किया गया है।”
कोर्ट ने नोट किया कि बेहतर हलफनामा दायर करने के लिए दो बार समय दिए जाने के बावजूद, अधिकारी ने कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश जारी रखी।
निर्णय
शुरुआत में, कोर्ट ने आदेश दिया: “उपरोक्त को देखते हुए, प्रतिवादी संख्या 1 को नोटिस जारी करने के लिए मामले को आपराधिक अवमानना से निपटने वाली उपयुक्त बेंच के समक्ष 20.1.2026 को रखा जाए।”
हालांकि, आदेश लिखवाए जाने के बाद, अपर महाधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने अनुरोध किया कि एक अंतिम अवसर के रूप में प्रतिवादी की ओर से बेहतर हलफनामा दायर करने के लिए दो सप्ताह का समय प्रदान किया जाए।
अनुरोध को स्वीकार करते हुए, कोर्ट ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 6 जनवरी, 2026 को सूचीबद्ध किया, जिससे अधिकारी को संभावित अवमानना कार्यवाही शुरू होने से पहले अपने आचरण को स्पष्ट करने का अंतिम मौका मिल गया।
केस डिटेल्स:
- केस टाइटल: एडबुलेवार्ड मीडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम अपर आयुक्त, ग्रेड-2 (अपील) प्रथम, राज्य कर, मेरठ और अन्य
- केस नंबर: रिट टैक्स नंबर 6707 ऑफ 2025
- कोरम: जस्टिस पीयूष अग्रवाल
- याची के वकील: राज कुमार सिंह, रजत एरेन
प्रतिवादी के वकील: सी.एस.सी., अनूप त्रिवेदी (अपर महाधिवक्ता), रवि शंकर पांडे (एसीएससी)

