इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि–शाही ईदगाह भूमि विवाद से संबंधित सभी अदालती कार्यवाहियों में “शाही ईदगाह मस्जिद” के स्थान पर “विवादित संरचना” शब्द के प्रयोग की मांग की गई थी।
यह आवेदन अधिवक्ता महेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा दायर हलफनामे के साथ प्रस्तुत किया गया था, जिसमें अनुरोध किया गया था कि अदालत अपने स्टेनोग्राफर और प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दे कि वे और सभी संबंधित वादों में और आगे की कार्यवाही में उक्त मस्जिद का उल्लेख “विवादित संरचना” के रूप में करें। याचिका का उद्देश्य अदालत में चल रहे कई मुकदमों में मस्जिद के नाम की जगह एक तटस्थ शब्दावली का इस्तेमाल सुनिश्चित करना था।
हालांकि, प्रतिवादियों की ओर से इस आवेदन का लिखित रूप से विरोध किया गया और अंततः न्यायमूर्ति राम मनोहर नरेन मिश्रा की पीठ ने इसे खारिज कर दिया। वे मथुरा विवाद से संबंधित सभी वादों की संयुक्त सुनवाई कर रहे हैं, जिनमें हिंदू पक्षकारों ने यह दावा किया है कि शाही ईदगाह मस्जिद भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर बनी है।

हिंदू पक्ष की ओर से अब तक कम से कम 18 वाद दायर किए जा चुके हैं जिनमें भूमि के स्वामित्व, मस्जिद ढांचे को हटाने, मूल मंदिर की पुनर्स्थापना और मुस्लिम पक्ष को धार्मिक गतिविधियां करने से स्थायी रोक लगाने की मांग की गई है।
इससे पहले 1 अगस्त 2024 को हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया था कि हिंदू श्रद्धालुओं द्वारा दायर मुकदमे सुनवाई योग्य हैं और मुस्लिम पक्ष की वक्फ अधिनियम, पूजा स्थल अधिनियम 1991 और परिसीमा अधिनियम के आधार पर दाखिल आपत्तियों को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि इन कानूनों में से कोई भी मुकदमों को रोकने के लिए बाधक नहीं हैं।
इसके बाद 23 अक्टूबर 2024 को हाईकोर्ट ने अपने 11 जनवरी 2024 के उस आदेश को वापस लेने से भी इनकार कर दिया था, जिसके तहत श्रीकृष्ण जन्मभूमि–शाही ईदगाह विवाद से जुड़े सभी लंबित वादों को एक साथ सुनवाई के लिए जोड़ा गया था।
यह दशकों पुराना विवाद इस दावे पर केंद्रित है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में बनी शाही ईदगाह मस्जिद उस भूमि पर स्थित है जिसे हिंदू धर्मावलंबी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान मानते हैं और जहां एक प्राचीन मंदिर को कथित रूप से ध्वस्त कर दिया गया था। हाल के वर्षों में धार्मिक स्थलों की “मुक्ति” की मांगों में तेजी के साथ यह कानूनी लड़ाई और तीव्र हो गई है।
ताजा आदेश के साथ, हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अदालती कार्यवाहियां अब तक की याचिकाओं और दलीलों में प्रयुक्त शब्दावली के अनुसार ही आगे बढ़ेंगी और “शाही ईदगाह मस्जिद” शब्द के स्थान पर किसी अन्य शब्द के प्रयोग की अनुमति नहीं दी जाएगी।