इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लोकगायिका नेहा सिंह राठौर के खिलाफ दर्ज उस एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया है, जिसमें उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है। अदालत ने कहा कि संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी उचित प्रतिबंध लागू होते हैं।
यह मामला 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद नेहा सिंह राठौर की ऑनलाइन पोस्ट से जुड़ा है, जिसमें 26 लोगों, जिनमें कई पर्यटक भी शामिल थे, की मौत हुई थी।
लखनऊ खंडपीठ के न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिज़वी ने माना कि एफआईआर और केस डायरी में दर्ज सामग्री prima facie एक संज्ञेय अपराध को दर्शाती है, जिसके आधार पर पुलिस जांच की जानी चाहिए।

बेंच ने कहा, “एफआईआर और केस डायरी के प्रासंगिक हिस्से का अवलोकन करने के बाद हमें यह विश्वास हुआ कि आरोप prima facie एक संज्ञेय अपराध को दर्शाते हैं, जिसकी जांच उचित है।”
अदालत ने राठौर की याचिका को “भ्रामक” बताते हुए खारिज कर दिया और उन्हें 26 सितंबर को जांच अधिकारी के समक्ष पेश होकर जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार निरंकुश नहीं है, बल्कि उस पर तर्कसंगत प्रतिबंध लागू होते हैं।
आदेश में उल्लेख किया गया कि राठौर की पोस्ट में प्रधानमंत्री के नाम का “अपमानजनक और अवमाननापूर्ण” ढंग से प्रयोग किया गया तथा सरकार पर “हजारों सैनिकों की जान स्वार्थ के लिए दांव पर लगाने” का आरोप लगाया गया। अदालत ने यह भी कहा कि उनकी टिप्पणियों में धार्मिक और राजनीतिक संकेत निहित थे और बिहार चुनाव से जुड़े थे। साथ ही, यह पोस्ट पहलगाम हमले के तुरंत बाद प्रसारित हुई, जिससे उसका प्रभाव और गहरा हो गया।
राठौर के वकील का कहना था कि 27 अप्रैल 2025 को हज़रतगंज थाने में दर्ज एफआईआर उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश है।
वहीं, सरकारी वकील वी.के. सिंह ने दलील दी कि गायिका की टिप्पणियां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं से परे थीं, विशेषकर उस समय जब पड़ोसी देश के साथ तनाव चरम पर था। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पोस्ट पाकिस्तान के सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा हुईं, जिससे उनकी गंभीरता और बढ़ गई।
अदालत ने राज्य के तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि आरोप इतने गंभीर हैं कि उन पर आगे जांच आवश्यक है और उन्हें प्रारंभिक स्तर पर खारिज नहीं किया जा सकता। इस आदेश के बाद पुलिस जांच जारी रख सकेगी और राठौर को इस महीने के अंत में जांच अधिकारी के समक्ष पेश होना होगा।