इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रायबरेली जिले के एक गांव में पुरुषों के सार्वजनिक शौचालयों की सफाई का कार्य पूरी तरह महिला कार्यबल को सौंपे जाने पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने कहा कि यह व्यवस्था ग्राम पंचायत द्वारा स्वीकृत किसी भी योजना के अनुरूप नहीं प्रतीत होती।
न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति ए.के. श्रीवास्तव की खंडपीठ जयनवां गांव (विकास खंड महाराजगंज) में शौचालय निर्माण और रख-रखाव को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी। यह याचिका याची जमुना प्रसाद द्वारा दाखिल की गई थी।
पिछली सुनवाई में अदालत ने गांव के प्रधान को तलब किया था। आदेश का पालन करते हुए प्रधान ने अदालत को बताया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव में पुरुषों और महिलाओं के लिए तीन-तीन शौचालयों का निर्माण किया गया है, जो एक ही परिसर में स्थित हैं।

प्रधान ने बताया कि इन शौचालयों के रख-रखाव की जिम्मेदारी ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित 12 महिलाओं के स्वयं सहायता समूह को सौंपी गई है, जो लगभग एक वर्ष से यह कार्य कर रहा है।
जब अदालत ने विशेष रूप से पुरुषों के शौचालयों के रख-रखाव के संबंध में ग्राम पंचायत की नीति पर सवाल किया, तो प्रधान ने बताया कि वही महिला समूह सभी शौचालयों की सफाई करता है। इस पर अदालत ने टिप्पणी की, “पुरुषों द्वारा उपयोग किए जाने वाले शौचालयों का रख-रखाव महिला कार्यबल द्वारा करवाना ग्राम पंचायत की किसी स्वीकृत योजना के अनुरूप प्रतीत नहीं होता।”
अदालत ने प्रधान को विस्तृत जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है और उन्हें 22 मई को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश भी दिया है।