इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाल यौन अपराधों से संरक्षण (POCSO) कानून के बढ़ते दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जताई है। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने कहा कि यह कानून, जिसे नाबालिग बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था, अब “शोषण का उपकरण” बनता जा रहा है।
यह टिप्पणी न्यायालय ने उस समय की जब उसने एक 18 वर्षीय युवक राज सोनकर को जमानत दी, जिसे एक 16 वर्षीय किशोरी के साथ कथित बलात्कार के आरोप में POCSO एक्ट और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत गिरफ्तार किया गया था।
अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा, “यह अधिनियम कभी भी प्रेम संबंधों में उत्पन्न सहमति आधारित रिश्तों को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए नहीं था। यदि पीड़िता के बयान को नजरअंदाज कर दिया जाए और आरोपी को जेल में सड़ने दिया जाए, तो यह न्याय की विकृति होगी।”

याचिकाकर्ता मार्च 2024 में गिरफ्तार हुआ था। उसके वकील ने तर्क दिया कि यह रिश्ता आपसी सहमति से था, प्राथमिकी दर्ज करने में 15 दिन की देरी हुई थी, और चिकित्सकीय साक्ष्य नहीं मिले। उन्होंने यह भी बताया कि आरोपी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और वह ज़मानत का दुरुपयोग नहीं करेगा।
इन सभी तथ्यों—प्राथमिकी में देरी, चिकित्सकीय पुष्टि का अभाव, और संबंध की प्रकृति—को ध्यान में रखते हुए अदालत ने मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी किए बिना जमानत मंज़ूर कर ली।