इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्पेशल अपील संख्या 208 ऑफ 2025 में निर्णय सुनाते हुए यह स्पष्ट किया है कि फोटो-एफिडेविट की पहचान संख्या जारी करने के लिए निर्धारित ₹125 से अधिक की राशि वसूलना अनुमन्य नहीं है। न्यायमूर्ति अताउ रहमान मसूदी और न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की खंडपीठ ने 3 जुलाई 2025 को यह निर्णय पारित किया।
यह विशेष अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा दायर की गई थी, जिसमें 19 मई 2025 को पारित रिट याचिका संख्या 3389/2025 के निर्णय की कुछ टिप्पणियों (पैरा 34, 35, 36 और 38) को चुनौती दी गई थी। अपीलकर्ता बार एसोसिएशन रिट याचिका का पक्षकार नहीं था, किंतु उसका तर्क था कि याचिका में उसके पक्ष को सुने बिना प्रतिकूल निर्देश दे दिए गए।
न्यायालय ने स्वीकार किया कि:

“यदि बार एसोसिएशन के विरुद्ध दिए गए निर्देश उसके हितों को प्रभावित करते हैं, तो न्याय के हित में अपील की अनुमति दी जानी चाहिए।”
पृष्ठभूमि
विवाद का केंद्र 22 नवम्बर 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी वह ऑफिस मेमोरेंडम था, जिसमें एफिडेविट दाखिल करते समय फोटो और बार एसोसिएशन द्वारा जारी पहचान संख्या की अनिवार्यता को लागू किया गया था। इसका उद्देश्य झूठे शपथपत्रों और प्रतिरूपण से बचाव करना था।
उक्त परिपत्र के अनुसार:
- हर एफिडेविट पर पासपोर्ट साइज फोटो और बार एसोसिएशन द्वारा जारी पहचान संख्या होनी चाहिए।
- यह संख्या जारी करने हेतु ₹125 तक ही शुल्क लिया जा सकता है।
- सरकारी अधिकारियों पर यह व्यवस्था लागू नहीं होगी।
- यदि कोई अधिवक्ता संबंधित बार का सदस्य नहीं भी है, किंतु उसके पास AOR नंबर है, तो भी उसे पहचान संख्या देने से रोका नहीं जा सकता।
न्यायालय के मुख्य अवलोकन
कोर्ट ने पाया कि इलाहाबाद और लखनऊ दोनों पीठों की बार एसोसिएशनों ने ₹125 शुल्क की अधिकतम सीमा को स्वीकार किया है, परंतु रसीदों की व्यवस्था में विसंगतियाँ पाई गईं:
- इलाहाबाद में, एक ही रसीद संख्या पर ₹125 के साथ ₹475 का अतिरिक्त शुल्क ‘अधिवक्ता निधि’ शीर्षक से लिया जा रहा था।
- लखनऊ में, रसीद में ₹125 का कोई उल्लेख नहीं था।
इस पर कोर्ट ने निर्देश दिया:
“दोनों बार एसोसिएशनों को निर्देशित किया जाता है कि वे अपनी रसीदों को परिपत्र दिनांक 22.11.2024 के अनुरूप पुनः डिज़ाइन करें तथा आदेश की प्राप्ति के 15 दिन के भीतर यह प्रक्रिया पूर्ण करें।”
इसके साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“न्यायालय में वाद दायर करने हेतु कोई भी वादी ₹125 से अधिक राशि जमा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बार एसोसिएशन द्वारा प्रस्तावित किसी भी कल्याणकारी योजना का उक्त फोटो पहचान प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है, और ऐसे योगदान स्वैच्छिक होंगे।
नोटरी एफिडेविट पर निर्देश में संशोधन
रिट निर्णय के पैरा 24 में स्टाम्प रिपोर्टिंग अनुभाग को नोटरी द्वारा शपथबद्ध एफिडेविट में दोष चिह्नित करने से रोका गया था। इस पर हाईकोर्ट के अधिवक्ता श्री गौरव मेहरोत्रा ने आपत्ति जताई।
कोर्ट ने हाईकोर्ट नियमावली के अध्याय II, नियम 1(ii) का हवाला देते हुए कहा:
“रजिस्ट्री को दोष चिह्नित करने का अधिकार है और संबंधित अधिवक्ता को उसे सुधारने का अवसर दिया जाता है।”
अतः न्यायालय ने उक्त निर्देश में संशोधन करते हुए कहा:
“रजिस्ट्री को नियमों के अनुसार कार्य करने की अनुमति दी जाती है और रिट कोर्ट द्वारा दिया गया निर्देश इस सीमा तक संशोधित किया जाता है।”