इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया है कि ग्राम सभा की भूमि पर अवैध कब्जे के मामलों में सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 (PDPP एक्ट) के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती। ऐसे मामलों का निपटारा उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के तहत किया जाना चाहिए, जो बेदखली की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है।
न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने ब्रह्मदत्त यादव के खिलाफ PDPP एक्ट की धारा 3/5 के तहत दर्ज मुकदमे को रद्द करते हुए यह आदेश दिया। अदालत ने मुंशी लाल व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य में स्थापित सिद्धांत का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ग्राम सभा भूमि पर अवैध कब्जे या अतिक्रमण से संबंधित आपराधिक कार्रवाई, तब तक लंबित रखी जानी चाहिए जब तक कि राजस्व न्यायालय उस भूमि पर पक्षकारों के अधिकारों का निर्धारण न कर दे।
विवादित मामले में लेखपाल ने ब्रह्मदत्त यादव और अन्य स्थानीय किसानों पर ग्राम सभा की भूमि पर अवैध कब्जा कर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी। इसके बाद चार्जशीट दाखिल की गई और मजिस्ट्रेट ने समन जारी कर दिया।

यादव की ओर से दलील दी गई कि मजिस्ट्रेट ने समन जारी करने से पहले मामले की गहराई से समीक्षा नहीं की और भूमि पर कब्जे का कोई भी विवाद उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के तहत राजस्व न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।
अदालत ने याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि PDPP एक्ट विशेष रूप से दंगों और सार्वजनिक अशांति के दौरान सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ और विनाश से निपटने के लिए बनाया गया था। ऐसे मामलों में, जहां भूमि स्वामित्व और अधिकारों का अभी निर्णय होना बाकी है, PDPP एक्ट का उपयोग करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
अदालत ने 15 अप्रैल को पारित अपने फैसले में कहा कि इस मामले में PDPP एक्ट के तहत कार्यवाही जारी रखना विधिक रूप से उचित नहीं है और इस आधार पर ब्रह्मदत्त यादव के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला रद्द कर दिया गया।