निर्णय लेखन में कमी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला जज को तीन माह के प्रशिक्षण का आदेश दिया

एक महत्वपूर्ण निर्णय में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर नगर के अतिरिक्त जिला जज अमित वर्मा को निर्णय लेखन में बार-बार की गई गंभीर त्रुटियों के चलते तीन माह के अनिवार्य प्रशिक्षण के लिए भेजने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने मुन्नी देवी द्वारा दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।

मुन्नी देवी ने किराएदारी विवाद से जुड़े अपने मामले में कुछ अतिरिक्त आधार जोड़ने की मांग की थी, जिसे जज वर्मा ने मात्र तीन पंक्तियों के आदेश के माध्यम से खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता ने इस खारिजी आदेश को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि जज ने उनके आवेदन पर गंभीरता से विचार नहीं किया और न ही कोई ठोस कारण स्पष्ट किया।

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मामले की समीक्षा करने पर न्यायमूर्ति तिवारी ने भी याचिकाकर्ता की चिंताओं से सहमति व्यक्त की और पाया कि जज वर्मा का आदेश विश्लेषणात्मक गहराई से पूर्णतः रहित था, जिससे उनके निर्णय लेखन कौशल में गंभीर कमी का संकेत मिलता है। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि यह कोई एकमात्र घटना नहीं थी, बल्कि जज वर्मा द्वारा निर्णय लेखन में लगातार लापरवाही का हिस्सा थी।

समस्या के समाधान के तौर पर, अदालत ने निर्देश दिया कि जज वर्मा को लखनऊ स्थित न्यायिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान (Judicial Training and Research Institute) में तीन महीने का गहन प्रशिक्षण दिया जाए ताकि उनके विधिक तर्क और निर्णय लेखन कौशल को उस स्तर तक सुधारा जा सके, जिसकी अपेक्षा उनके पद से की जाती है।

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