इलाहाबाद हाईकोर्ट: शिक्षक की मौत के एक साल बाद बर्खास्तगी की कार्रवाई, कोर्ट ने शिक्षा निदेशक से मांगा जवाब

उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में अफसरों की लापरवाही का एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जिसने इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी हैरान कर दिया है। विभाग ने एक ऐसे सरकारी शिक्षक के खिलाफ बर्खास्तगी की कार्रवाई शुरू कर दी, जिसका निधन एक साल पहले ही कोरोना से हो चुका था।

इस मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ ने उत्तर प्रदेश के शिक्षा निदेशक (बेसिक) को तलब किया है। कोर्ट ने उनसे व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा है कि आखिर किन परिस्थितियों में एक मृत व्यक्ति के खिलाफ सेवा समाप्ति की कार्यवाही शुरू की गई।

यह मामला तब प्रकाश में आया जब दिवंगत सहायक शिक्षक मुकुल सक्सेना की पत्नी, प्रीति सक्सेना ने अपनी पारिवारिक पेंशन रोके जाने के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

मुकुल सक्सेना की नियुक्ति 1996 में मृतक आश्रित कोटे (compassionate grounds) के तहत प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के पद पर हुई थी। उन्होंने 25 अक्टूबर 1996 को कार्यभार संभाला था। लगभग 25 साल की सेवा के बाद, 31 मई 2021 को कोविड-19 महामारी के दौरान उनका निधन हो गया। पति की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को पारिवारिक पेंशन मिलने लगी थी।

READ ALSO  आरोपी असाधारण परिस्थितियों में ही जांच एजेंसी बदलने की मांग कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

हालाँकि, दिसंबर 2022 में कहानी में एक नया मोड़ आया जब कानपुर मंडल के अपर निदेशक (कोषागार और पेंशन) के आदेश के बाद अचानक विधवा की पेंशन रोक दी गई।

सुनवाई के दौरान अदालत के सामने जो तथ्य आए, वे चौंकाने वाले थे। रिकॉर्ड से पता चला कि शिक्षा निदेशक (बेसिक) ने 18 जुलाई 2022 को एक पत्र जारी किया था। यह तारीख मुकुल सक्सेना की मौत के 13 महीने बाद की थी। इस पत्र में दिवंगत शिक्षक की सेवाएं समाप्त करने की कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया गया था।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने संभल डिमोलिशन याचिका पर सुनवाई से किया इनकार, याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया

इसी आदेश का हवाला देते हुए, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA), फर्रुखाबाद ने 17 सितंबर 2022 को वित्त एवं लेखा अधिकारी को पत्र लिखा और मुकुल सक्सेना की सेवाएं समाप्त करने के निर्देश का उल्लेख करते हुए उनकी विधवा की पेंशन रोकने की सिफारिश की। अंततः 19 दिसंबर 2022 को पेंशन बंद कर दी गई।

जस्टिस प्रकाश पाडिया ने विभाग की इस कार्यप्रणाली पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि मुकुल सक्सेना के जीवित रहते हुए उनकी नियुक्ति को किसी भी सक्षम अधिकारी ने अवैध घोषित किया हो।

कानूनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए कोर्ट ने कहा:

“यह स्थापित कानून है कि किसी मृत व्यक्ति के खिलाफ जांच शुरू नहीं की जा सकती। मौजूदा मामले में, रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि स्वर्गीय मुकुल सक्सेना की मृत्यु 31 मई 2021 को हो गई थी। इसके बावजूद, शिक्षा निदेशक (बेसिक) ने 18 जुलाई 2022 को उनकी सेवा समाप्ति की कार्यवाही शुरू करने के लिए पत्र लिखा, जिसके कारण वही बेहतर बता सकते हैं।”

अधिकारियों के आचरण को “बेहद आश्चर्यजनक” करार देते हुए, कोर्ट ने सवाल उठाया कि एक मृत कर्मचारी के खिलाफ ऐसा आदेश कैसे पारित किया जा सकता है।

READ ALSO  कर्नाटक हाई कोर्ट ने चाइल्ड कस्टडी विवादों पर दिशानिर्देशों के लिए स्वयं मामला शुरू किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षा निदेशक (बेसिक) को निर्देश दिया है कि वह एक सप्ताह के भीतर अपना व्यक्तिगत हलफनामा (Personal Affidavit) दाखिल करें और इस विसंगति को स्पष्ट करें।

कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि निर्धारित समय के भीतर हलफनामा दाखिल नहीं किया गया, तो निदेशक को 16 दिसंबर, 2025 को होने वाली अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित रहना होगा।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles