नाबालिग का स्वेच्छा से घर छोड़ना अपहरण नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कोई नाबालिग अपनी मर्जी से अभिभावकों की निगरानी छोड़ देता है और इसमें किसी प्रकार का प्रलोभन या प्रेरणा शामिल नहीं है, तो उस स्थिति में अपहरण का मामला नहीं बनता।

न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान ने हिमांशु दुबे के खिलाफ दर्ज अपहरण मामले को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि केवल नाबालिग से संपर्क में रहना “अभिभावकों की निगरानी से बहला-फुसलाकर ले जाना” (भारतीय दंड संहिता की धारा 361) नहीं माना जा सकता।

पीठ ने कहा:
“जहां नाबालिग अपनी स्वेच्छा और इच्छा से अभिभावकों की निगरानी छोड़ देता है, वहां धारा 361 आईपीसी लागू नहीं होती।”

अदालत ने स्पष्ट किया कि अपहरण के अपराध के लिए आरोपी द्वारा प्रलोभन या प्रेरणा का स्पष्ट सबूत होना आवश्यक है। केवल सामान्य बातचीत या जान-पहचान को अपहरण नहीं माना जा सकता।

दिसंबर 2020 में दर्ज एफआईआर में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि दुबे ने उसकी 16 वर्षीय भतीजी को बहला-फुसलाकर ले जाया।
जांच के दौरान, लड़की ने पुलिस और ट्रायल कोर्ट में बयान दिया कि उसने घर इसलिए छोड़ा क्योंकि परिवार के सदस्यों ने उसकी पिटाई की और उसे बिजली का झटका भी दिया। उसने बताया कि जब उसके चाचा को पता चला कि वह दुबे से फोन पर बात कर रही थी, तो उन्होंने उस पर हमला किया। इसके बाद वह खुद सीवान चली गई और दो दिन वहीं रही, फिर पुलिस के पास पहुंची।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण से पूछा: "क्या भारत अभी भी एक गरीब देश का टैग ढो रहा है?"

महत्वपूर्ण बात यह रही कि लड़की ने अपने घर छोड़ने में दुबे की किसी भी भूमिका का उल्लेख नहीं किया। हालांकि उसकी मां ने उसके रिश्ते की बात कही, लेकिन स्वयं लड़की ने भागने का कोई आरोप नहीं लगाया।

इन आधारों पर दुबे ने चार्जशीट और मुकदमे की कार्यवाही को निरस्त करने की अर्जी दायर की। हाईकोर्ट ने 10 सितंबर को अपना आदेश पारित करते हुए अर्जी स्वीकार कर मामला खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि अपहरण के अपराध की आवश्यक शर्तें इस मामले में पूरी नहीं होतीं।

READ ALSO  21वीं सदी में पुरुष प्रधानता अस्वीकार्य है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आबकारी कांस्टेबल के पद पर भर्ती प्रक्रिया के ख़िलाफ़ दायर याचिका ख़ारिज की
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles