इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिश्वतखोरी ऑडियो के आधार पर निलंबित जीएसटी अधिकारी को दी अंतरिम राहत, निलंबन आदेश पर रोक

लखनऊ, 11 जुलाई 2025 – इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण अंतरिम राहत देते हुए जीएसटी अधिकारी सुदामा पासवान के निलंबन आदेश पर रोक लगा दी। पासवान पर सोशल मीडिया पर वायरल एक ऑडियो संदेश के जरिए रिश्वत मांगने और अन्य शिकायतों का आरोप है। न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने अगली सुनवाई तक निलंबन आदेश की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए ऑडियो साक्ष्य की प्रमाणिकता और कुछ आरोपों की अस्पष्टता को लेकर प्रथम दृष्टया चिंता जताई।

यह मामला रिट – ए नं. 7467/2025 के रूप में कोर्ट नं. 18 में सुना गया। याचिकाकर्ता पासवान ने उत्तर प्रदेश सरकार के वाणिज्य कर विभाग, लखनऊ द्वारा 21 जून 2025 को जारी निलंबन आदेश को चुनौती दी थी। याची की ओर से अधिवक्ता आलोक मिश्रा एवं प्रांजल शुक्ला, जबकि राज्य पक्ष की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता (सी.एस.सी.) उपस्थित रहे।

पृष्ठभूमि और आरोप

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सुदामा पासवान के खिलाफ तीन प्रमुख आरोप निलंबन आदेश में दर्ज थे –

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सोशल मीडिया पर वायरल एक ऑडियो क्लिप जिसमें प्रथम दृष्टया पासवान को रिश्वत मांगते सुना गया। 15 मई 2025 को आयोजित एक सेमिनार में विभिन्न व्यक्तियों द्वारा उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए। निरीक्षण के दौरान कार्यस्थल पर अनुपस्थित पाए जाने का आरोप।

याचिका में कहा गया कि यह निलंबन आदेश न केवल अप्रमाणिक है, बल्कि प्रक्रिया की मूलभूत निष्पक्षता का भी उल्लंघन करता है।

अदालत में प्रस्तुत तर्क

याची के अधिवक्ता ने तीनों आरोपों को चुनौती दी। पहले आरोप पर उन्होंने कहा कि निलंबन आदेश में यह उल्लेख नहीं है कि सोशल मीडिया पर उपलब्ध ऑडियो क्लिप की किसी विशेषज्ञ से सत्यता की जांच करवाई गई है या नहीं। आज के युग में, जहां कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से किसी की भी आवाज आसानी से नकली बनाई जा सकती है, विशेषज्ञ द्वारा प्रमाणन आवश्यक है। दूसरे आरोप को पूरी तरह से अस्पष्ट बताया गया क्योंकि न तो सेमिनार की शिकायतों की प्रकृति स्पष्ट की गई और न ही यह बताया गया कि उन्हें किसने उठाया। इससे याचिकाकर्ता के लिए अपना बचाव करना असंभव हो जाता है। तीसरे आरोप – ड्यूटी से अनुपस्थिति – को अधिवक्ता ने नकारा और कहा कि यह आरोप किसी भी ठोस प्रमाण के बिना लगाया गया है।

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राज्य पक्ष की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने इस सुनवाई में विस्तृत प्रतिवाद प्रस्तुत नहीं किया, और अदालत ने उन्हें निर्देश दिया कि वे आगे की जानकारी प्राप्त कर एक संक्षिप्त जवाबी हलफनामा दाखिल करें।

कानूनी मुद्दे और न्यायालय की टिप्पणियां

न्यायालय के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि –

क्या वायरल ऑडियो क्लिप को विशेषज्ञों से सत्यापित कराया गया था? क्या सेमिनार से जुड़ी शिकायतें पर्याप्त रूप से स्पष्ट थीं ताकि याचिकाकर्ता उनका उत्तर दे सके? क्या ड्यूटी से अनुपस्थिति का आरोप पर्याप्त रूप से पुष्ट था?

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न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने माना कि याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों में प्रथम दृष्टया बल है और इन बिंदुओं की और जांच आवश्यक है। न्यायालय ने राज्य पक्ष को 10 दिन के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, विशेष रूप से ऑडियो प्रमाण की विशेषज्ञ जांच को लेकर।

न्यायालय का आदेश और आगामी प्रक्रिया

11 जुलाई 2025 को पारित आदेश में अदालत ने कहा कि यह मामला अब 23 जुलाई 2025 को नए सिरे से सूचीबद्ध किया जाएगा। इस बीच, 21 जून 2025 का निलंबन आदेश स्थगित रहेगा। यानी, अगली सुनवाई तक सुदामा पासवान को बहाल माना जाएगा।

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