इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2022 के रंगदारी मामले में समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक इरफान सोलंकी और उनके भाई रिजवान सोलंकी को जमानत दे दी है। कानपुर नगर के जाजमऊ थाने में दर्ज मामले में दोनों भाइयों पर आरोप है कि उन्होंने गरीब स्थानीय लोगों की जमीन हड़पने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अकील अहमद से 10 लाख रुपये की रंगदारी मांगने की कोशिश की थी।
जस्टिस राजबीर सिंह ने जमानत आदेश सुनाते हुए कहा कि इरफान सोलंकी पहले ही दो साल से अधिक समय तक हिरासत में रह चुका है। उन्होंने सोलंकी के व्यापक आपराधिक रिकॉर्ड पर प्रकाश डाला, जिसमें नौ पूर्व मामले और घटना के बाद के नौ अन्य मामले शामिल हैं। हालांकि, न्यायाधीश ने 2020 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कई आपराधिक मामलों का होना ही जमानत देने से इनकार करने का औचित्य नहीं है।
अपने फैसले में जस्टिस सिंह ने कहा, “आवेदक का पिछले नौ मामलों में आपराधिक इतिहास है और इस मामले के बाद उसे नौ और मामलों में शामिल दिखाया गया। प्रभाकर तिवारी बनाम यूपी राज्य 2020 (11) एससीसी 648 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी के खिलाफ कई आपराधिक मामलों का लंबित होना ही जमानत से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता। आरोपों की प्रकृति और धारा 386 आईपीसी के तहत कोई मामला न होने के तर्क और हिरासत की अवधि को देखते हुए, केवल आपराधिक इतिहास और दोषसिद्धि के आधार पर जमानत याचिका खारिज नहीं की जा सकती।”

बचाव पक्ष के वकील इमरान उल्लाह ने तर्क दिया कि सोलंकी बंधुओं को राजनीतिक दुश्मनी के कारण गलत तरीके से फंसाया गया है, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कथित घटना के समय इरफान विधायक के तौर पर काम कर रहे थे।
इस मामले में जमानत मिलने के बावजूद इरफान और रिजवान सोलंकी दोनों अन्य लंबित आपराधिक कार्यवाही के कारण हिरासत में रहेंगे। कानपुर के शीशमऊ से चार बार के विधायक इरफान सोलंकी को पहले 2022 के आगजनी मामले में सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी, जिसके कारण उन्हें उत्तर प्रदेश विधानसभा से अयोग्य भी ठहराया गया था।