विवाह संस्था की पवित्रता को गंभीर रूप से कमजोर किया गया: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फर्जी विवाह प्रमाणपत्रों की जांच के आदेश दिए

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने “कपल प्रोटेक्शन” याचिकाओं में फर्जी विवाह प्रमाणपत्रों के बढ़ते चलन पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि विवाह संस्था की पवित्रता को “गंभीर रूप से कमजोर” किया गया है। शनि देव व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य (सिविल रिट याचिका संख्या 22491/2024) में न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने यह महत्वपूर्ण आदेश पारित किया। न्यायालय ने इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए राज्य के कई प्रशासनिक अधिकारियों को सख्त जांच और आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता शनि देव एवं एक अन्य ने आरोप लगाया कि उन्होंने परिवार की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया है और उन्हें जान का खतरा है। दोनों ने 3 जून 2024 को ग्रेटर नोएडा स्थित आर्य समाज मंदिर में विवाह करने का दावा किया तथा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, इटावा से सुरक्षा की मांग की। इस याचिका के साथ 124 अन्य याचिकाएं भी न्यायालय में लंबित थीं।

राज्य का पक्ष

राज्य सरकार के अधिवक्ता ने प्रस्तुत प्रमाणपत्र की वैधता पर सवाल उठाते हुए इसे “फर्जी” बताया। उन्होंने कहा कि प्रमाणपत्र में पुजारी का नाम, गवाहों की जानकारी एवं आर्य समाज मंदिर का पंजीकृत पता नहीं दिया गया है, जिससे इसकी प्रामाणिकता संदिग्ध है। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ताओं ने स्थानीय पुलिस से संपर्क नहीं किया बल्कि केवल हाईकोर्ट परिसर स्थित डाकघर से रजिस्टर्ड डाक द्वारा पत्र भेजा।

राज्य पक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि ऐसी कई याचिकाएं बिना वास्तविक विवाह के फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर दाखिल की जा रही हैं, जिनमें आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज भी जाली होते हैं।

न्यायालय की टिप्पणी

न्यायालय ने कहा कि “कई मामलों में पाया गया कि विवाह प्रमाणपत्र ऐसे संस्थानों द्वारा जारी किए गए हैं जो वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं हैं।” अदालत ने पाया कि कई आर्य समाज संगठन पंजीकृत नहीं हैं और वे नाबालिगों के विवाह भी करवा रहे हैं, जिससे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 1929 का उल्लंघन होता है।

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अदालत ने स्पष्ट किया कि “बालिग होने पर जीवन साथी चुनने का अधिकार मौलिक है, लेकिन इसे फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से या विधि को दरकिनार कर प्राप्त नहीं किया जा सकता।”

न्यायालय के आदेश

न्यायालय ने विस्तृत जांच के लिए निम्नलिखित आदेश दिए:

  • पंजीकरण महानिरीक्षक (IG Registration) को गाजियाबाद में पंजीकृत 29,022 विवाहों की जांच कर असमानता के कारणों की रिपोर्ट देने का निर्देश।
  • गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर एवं प्रयागराज के जिलाधिकारियों को ऐसे सभी संगठनों की जांच करने का आदेश जो विवाह प्रमाणपत्र जारी कर रहे हैं।
  • पुलिस अधिकारियों को आदेश दिया गया कि याचिकाओं में प्रस्तुत आधार कार्ड, शैक्षणिक प्रमाणपत्र, और विवाह प्रमाणपत्रों की सत्यता की जांच करें।
  • सभी विवाह पंजीयन कार्यालयों को दस्तावेजों की कड़ी जांच सुनिश्चित करने का निर्देश।

आंकड़े और प्रभाव

IG Registration की रिपोर्ट के अनुसार 1 अगस्त 2023 से 1 अगस्त 2024 के बीच गाजियाबाद में 29,022 विवाह पंजीकृत हुए जबकि कई जिलों में यह संख्या 500 से भी कम रही। अदालत ने कहा कि इन विवाहों में से अधिकांश में वर-वधू का गाजियाबाद से कोई संबंध नहीं था, जिससे याचिकाओं की वैधता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।

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न्यायालय ने टिप्पणी की: “ऐसी गतिविधियाँ न केवल विवाह संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं, बल्कि समाज की संरचना को भी क्षति पहुँचाती हैं।”

जारी जांच और गिरफ्तारी

प्रयागराज और गाजियाबाद पुलिस ने इस मामले में अब तक कुल 16 एफआईआर दर्ज की हैं और कई व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें फर्जी आर्य समाज प्रमाणपत्र तैयार करने वाले व्यक्ति, प्रिंटिंग शॉप के कर्मचारी, और अन्य बिचौलिये शामिल हैं। पुलिस ने फर्जी प्रमाणपत्र, कम्प्यूटर और दस्तावेजों को भी जब्त किया है।

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