इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की दो विद्युत वितरण कंपनियों — दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PVVNL) — के प्रस्तावित निजीकरण को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (PIL) को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिका केवल “अनुमानों पर आधारित” है और इसका कोई ठोस आधार नहीं है।
यह याचिका विजय प्रताप सिंह द्वारा दायर की गई थी, जिसमें यूपीजील (UPPCL) द्वारा जारी कुछ संचारों के आधार पर इन कंपनियों के निजीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, “याचिका में मांगी गई राहत और दी गई चुनौती स्पष्ट रूप से अनुमानों पर आधारित है। अभिलेख से यह स्पष्ट नहीं होता कि याचिकाकर्ता ने कभी भी उत्तरदाताओं से उन तथ्यों के संबंध में कोई जानकारी मांगी हो, जिन पर वह अपनी याचिका आधारित कर रहे हैं।”

पीठ ने कहा कि ऐसे में इस स्तर पर याचिका को विचारार्थ लेने का कोई औचित्य नहीं है और इसे खारिज किया जाता है। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता विधि के अनुसार उपयुक्त कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र है।
याचिका में अदालत से यह आग्रह किया गया था कि वह एक रिट ऑफ सर्टियोरारी जारी कर PVVNL की हिस्सेदारी घटाने की प्रक्रिया को रद्द करे, क्योंकि यह कंपनी अधिनियम, 2013 और नियमों का पालन किए बिना की जा रही है। साथ ही, एक रिट ऑफ मैंडमस जारी कर यूपीजील और उसकी सहयोगी कंपनियों में केवल तकनीकी योग्यता रखने वाले पेशेवरों की नियुक्ति सुनिश्चित करने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी।
अदालत ने 11 जुलाई को पारित आदेश में यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत दस्तावेजों में केवल यह दर्शाया गया है कि यूपीजील की तकनीकी मूल्यांकन समिति ने DVVNL और PVVNL के निजीकरण के लिए तकनीकी बोलियों का मूल्यांकन किया है, इसके अतिरिक्त कोई ठोस सामग्री प्रस्तुत नहीं की गई।