इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुंभ के बाद घाटों पर कचरा प्रबंधन को लेकर दायर जनहित याचिका निपटाई, याचियों को एनजीटी जाने का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज में महाकुंभ के बाद विभिन्न घाटों पर कचरे के कथित कुप्रबंधन को लेकर दाखिल जनहित याचिका (PIL) को यह कहते हुए निस्तारित कर दिया कि याचिकाकर्ता इस मुद्दे के निवारण हेतु राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) से संपर्क करें।

न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी और न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 14 के तहत पर्यावरणीय मामलों की सुनवाई करने का विशेषाधिकार एनजीटी को प्राप्त है, और वह इन मामलों का “शीघ्र एवं प्रभावी” निवारण कर सकता है। अदालत ने 27 जून के आदेश में कहा, “हम इस याचिका को निस्तारित करना उपयुक्त मानते हैं, यह याचिकाकर्ताओं के लिए खुला रहेगा कि वे अपनी शिकायतों के निवारण हेतु अधिकरण का रुख करें।”

यह याचिका अंशिका पांडेय व सात अन्य विधि प्रशिक्षुओं ने दायर की थी, जिसमें त्रिवेणी घाट (झूंसी), संगम घाट और बलुआ घाट पर “अनुचित” कचरा प्रबंधन को लेकर चिंता जताई गई थी। याचिका में कहा गया कि मानसून के आगमन के मद्देनज़र घाटों पर पड़ा अनुपचारित कचरा, प्लास्टिक कचरा और ठहरा हुआ पानी जनस्वास्थ्य एवं स्वच्छता के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

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याचिकाकर्ताओं का कहना था कि त्रिवेणी और संगम घाटों पर प्लास्टिक कचरा अव्यवस्थित रूप से पड़ा था और उसका कोई पृथक्करण नहीं किया गया था, जबकि ठहरा पानी दुर्गंध व कीट-पतंगों की उत्पत्ति का कारण बन रहा था। बलुआ घाट पर कचरा संग्रहण के लिए कोई निर्धारित स्थान नहीं था, जिससे कचरा बिखरा हुआ और अव्यवस्थित पाया गया।

कुंभ मेला प्राधिकरण की ओर से पेश अधिवक्ता कार्तिकेय सारण ने प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए कहा कि यह मामला पूरी तरह से एनजीटी के क्षेत्राधिकार में आता है और याचिकाकर्ताओं के पास एक वैकल्पिक कानूनी उपाय मौजूद है।

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अदालत ने इस आपत्ति को स्वीकार करते हुए कहा कि जब एनजीटी अधिनियम के तहत वैधानिक उपचार उपलब्ध है, तब हाईकोर्ट में याचिका विचारणीय नहीं है।

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