इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के विभिन्न जोनों में तैनात पुलिस इंस्पेक्टरों व दरोगाओं की ट्रेनिंग अवधि का वेतन देने तथा इस अवधि को सेवा में जोड़कर वेतन वृद्धि प्रदान करने समेत सातवें वेतन आयोग का लाभ देने को लेकर दाखिल याचिका पर प्रदेश सरकार के अपर पुलिस महानिदेशक, भवन एवं कल्याण, डीजीपी, हेड क्वार्टर उत्तर प्रदेश लखनऊ को दो माह में आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश जस्टिस सरल श्रीवास्तव ने उत्तर प्रदेश के मेरठ जोन, आगरा जोन, प्रयागराज जोन, गोरखपुर जोन, कानपुर जोन, बरेली जोन एवं वाराणसी जोन के विभिन्न जनपदों में तैनात दरोगाओं एवं पुलिस इंस्पेक्टरों की तरफ से दाखिल याचिकाओं पर पारित किया है। दरोगाओं एवं इंस्पेक्टरों ने अलग-अलग ग्रुप वाइज याचिकाएं दाखिल कर उनकी ट्रेनिंग की अवधि की सैलरी देने के संबंध में तथा इस अवधि को उनकी सेवा में जोड़ते हुए वेतन वृद्धि प्रदान किए जाने को लेकर हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी।
याचिकाएं वरुण कुमार शर्मा व 75 अन्य, प्रमोद कुमार राम व 98 अन्य तथा स्वाति शर्मा व 24 अन्य की तरफ से दाखिल की गई थी। पुलिस इंस्पेक्टरों व दरोगाओं की तरफ से कोर्ट में उपस्थित सीनियर एडवोकेट विजय गौतम का कहना था कि हाईकोर्ट ने आलोक कुमार सिंह व अन्य की केस में यह निर्णय दिया है कि दरोगाओं एवं इंस्पेक्टरों को ट्रेनिंग की पीरियड की अवधि में शासनादेश 16 सितम्बर 1965 तथा शासनादेश 3 नवम्बर 1979 के परिपेक्ष में ट्रेनिंग अवधि का वेतन दिया जाएगा। कहा गया था कि प्रदेश सरकार की एसएलपी भी सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो गई है। अधिवक्ता का कहना था कि शासन ने 29 मार्च 2022 के आदेश द्वारा याचीगणों के समकक्ष अन्य दरोगाओं एवं इंस्पेक्टरों को ट्रेनिंग अवधि की सैलरी देने की अनुमति दे दी है, जबकि याचीगणों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।
याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट ने लालबाबू शुक्ला व अन्य के केस में यह विधि प्रतिपादित की है कि ट्रेनिंग पीरियड जोड़ते हुए प्रमोशनल पे स्केल व वेतन वृद्धि पुलिस कर्मियों को प्रदान की जाएगी। याचीगणों को ट्रेनिंग पीरियड में स्टाइपेंड प्रतिमाह दिया गया था। जबकि इस पीरियड की अवधि का पूर्ण वेतन व भत्ता दिया जाना चाहिए था जो नहीं किया गया। यही नहीं ट्रेनिंग पीरियड की अवधि सेवा की अवधि में नहीं जोड़ी गई।