इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के आश्रित (DFF) कोटे में नियुक्त सहायक शिक्षक की सेवा समाप्ति के आदेश को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने कहा कि याची के विरुद्ध धोखाधड़ी या तथ्य छुपाने का कोई प्रमाण नहीं है और प्रमाणपत्र में हुआ विवाद केवल प्रमाण-पत्र जारी करने वाले कार्यालय की क्लेरिकल त्रुटि प्रतीत होता है।
मामला संक्षेप में
याची नवतेज कुमार सिंह को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित कोटे के तहत जूनियर बेसिक स्कूल, यादव बस्ती छिब्बी, बलिया में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने 22 अक्टूबर 2020 को कार्यभार ग्रहण किया था। उनकी नियुक्ति 4 अप्रैल 2008 को जिलाधिकारी बलिया द्वारा जारी एक प्रमाणपत्र पर आधारित थी।
दस्तावेज़ सत्यापन के दौरान यह पाया गया कि उक्त प्रमाणपत्र पर अंकित क्रमांक (क्रम संख्या 1114) पर जिला रिकार्ड में किसी अन्य व्यक्ति — हरमीत सिंह — का नाम दर्ज है। इसके आधार पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, बलिया ने 31 जुलाई 2021 को याची की सेवाएं समाप्त कर दीं और प्राप्त वेतन राज्य कोष में जमा करने का निर्देश भी दिया।

याची की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता आर. के. ओझा और अधिवक्ता संतोष कुमार सिंह पालीवाल द्वारा प्रस्तुत याचिका में कहा गया:
- याची वास्तव में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. शुभ नारायण सिंह के आश्रित हैं।
- जब उन्हें 2008 में DFF प्रमाणपत्र जारी हुआ, तब वे केवल 16.5 वर्ष के थे।
- नोटिस मिलने के बाद याची ने पुनः जिलाधिकारी कार्यालय से संपर्क किया, जिसने 1 अप्रैल 2021 को पुनः प्रमाणित किया कि याची DFF श्रेणी में आते हैं।
- प्रमाणपत्र में क्रम संख्या की त्रुटि कार्यालय की भूल है, जिसमें याची की कोई भूमिका नहीं रही।
- न तो कोई तथ्य छुपाया गया और न ही कोई धोखाधड़ी की गई।
याची ने नीरज कुमार बनाम राज्य सरकार, लखनऊ पीठ (25.11.2019) का हवाला भी दिया, जिसमें इसी तरह की प्रशासनिक गलती को धोखाधड़ी नहीं माना गया था।
राज्य सरकार की दलीलें
राज्य के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि:
- याची ने एक फर्जी प्रमाणपत्र लगाकर नियुक्ति प्राप्त की।
- याची को पूर्व प्रमाणपत्र को प्रमाणित करने का अवसर दिया गया, लेकिन उन्होंने नया प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर दिया।
- धोखाधड़ी न्याय व्यवस्था की नींव को हिला देती है, इसलिए इस प्रकार की नियुक्ति रद्द की जा सकती है।
राज्य ने देवेंद्र शर्मा बनाम बिहार राज्य, सतीश चंद्र यादव बनाम भारत सरकार, और सौरभ श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य जैसे मामलों का हवाला दिया।
कोर्ट का विश्लेषण
अदालत ने यह प्रश्न रखा कि क्या याची ने नौकरी धोखाधड़ी से प्राप्त की या फिर प्रशासनिक गलती के कारण उन्हें गलत प्रमाणपत्र जारी हुआ।
प्रमुख टिप्पणियां:
- “निःसंदेह, याची DFF श्रेणी में आते हैं। इस तथ्य को प्रतिवादी पक्ष ने भी कभी नहीं नकारा।”
- “निलंबन आदेश में याची द्वारा कोई फर्जीवाड़ा या जालसाजी किए जाने का स्पष्ट उल्लेख नहीं है।”
- “धोखाधड़ी को ठोस साक्ष्य द्वारा सिद्ध करना होता है। केवल दस्तावेज़ जारी करने में हुई अनियमितता को याची की धोखाधड़ी नहीं कहा जा सकता।”
अदालत ने कहा कि राज्य द्वारा उद्धृत निर्णयों में स्पष्ट धोखाधड़ी, तथ्य छुपाना या गलत जानकारी देने की बात थी, जो इस मामले में नहीं पाई गई।
कोर्ट ने अहीरे अजिक्य शंकर बनाम इंडियन कोस्ट गार्ड (दिल्ली हाईकोर्ट, 2023) और मो. जामिल अहमद बनाम बिहार राज्य (सुप्रीम कोर्ट, 2016) के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि यदि प्रशासनिक गलती के कारण नियुक्ति हुई हो और अभ्यर्थी की कोई गलती न हो, तो दंडात्मक कार्रवाई उचित नहीं।
निर्णय
कोर्ट ने कहा:
“यदि सक्षम प्राधिकारी द्वारा गलती से प्रमाणपत्र जारी हो जाए और बाद में उस त्रुटि को मान्यता देते हुए संशोधित प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाए, तो इसे जालसाजी नहीं माना जा सकता।”
न्यायालय ने 31 जुलाई 2021 का बर्ख़ास्तगी आदेश रद्द करते हुए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, बलिया को निर्देश दिया कि:
“याची को तत्काल सहायक अध्यापक पद पर पुनः नियुक्त करते हुए सेवा में बहाल किया जाए।”
याचिका स्वीकार की गई। पक्षकारों को अपने-अपने खर्च वहन करने होंगे।
मामला: नवतेज कुमार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
न्यायिक उद्धरण: 2025:AHC:130908