इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओवरलोडेड ट्रक सिंडिकेट मामले में आरटीओ सुपरवाइजर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने परिवहन विभाग के एक प्रवर्तन पर्यवेक्षक (Enforcement Supervisor) की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। यह अधिकारी अवैध रूप से ओवरलोडेड ट्रकों को पास कराने वाले एक सिंडिकेट का हिस्सा होने का आरोपी है। न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया (prima facie) आवेदक और सह-अभियुक्तों के बीच सक्रिय बातचीत के सबूत मिले हैं, जो एक संगठित नेटवर्क के संचालन की ओर इशारा करते हैं जिससे राज्य को भारी राजस्व हानि हो रही है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एसटीएफ (STF) द्वारा दर्ज की गई एक एफआईआर से संबंधित है, जिसमें परिवहन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से एक रैकेट चलाने का आरोप लगाया गया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरटीओ (RTO) और पीटीओ (PTO) अधिकारियों व उनके अधीनस्थ कर्मचारियों की मिलीभगत से बिना वैध परमिट के बालू और गिट्टी ले जाने वाले ओवरलोडेड ट्रकों को पास कराया जा रहा था।

11 नवंबर, 2025 को एसटीएफ ने अभिनव पांडे नामक व्यक्ति को पकड़ा, जिसने कथित तौर पर कबूल किया कि वह ट्रक मालिकों और चालकों से रिश्वत लेकर वाहनों को पास कराने का काम करता था। उसकी निशानदेही पर एक ओवरलोडेड ट्रक को रोका गया, जिसके चालक ने बताया कि पांडे के माध्यम से परिवहन अधिकारियों को भुगतान पहले ही किया जा चुका है। जांच में सामने आया कि यह सिंडिकेट पूरे राज्य में सक्रिय था और वैधानिक दंड से बचने के लिए प्रति ट्रक 5,000 से 6,000 रुपये की अवैध वसूली की जा रही थी।

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पक्षों की दलीलें

आवेदक अनुज कुमार निषाद, जो एआरटीओ राजीव बंसल के अधीन प्रवर्तन पर्यवेक्षक के पद पर तैनात हैं, ने बीएनएस (BNS) की विभिन्न धाराओं और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 और 12 के तहत दर्ज केस क्राइम नंबर 660/2025 में अग्रिम जमानत की मांग की थी।

आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि निषाद केवल जब्ती या चालान के गवाह थे और उनके पास एआरटीओ की अनुमति के बिना वाहनों की जांच या जब्ती का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं था। यह भी कहा गया कि आवेदक का मोबाइल नंबर अपराध से जुड़ा नहीं है और वह सह-अभियुक्त अभिनव पांडे को नहीं जानते हैं। बचाव पक्ष ने आवेदक के वर्ष 2000 से अब तक के बेदाग सेवा रिकॉर्ड का हवाला दिया।

इसका विरोध करते हुए, राज्य सरकार के अपर शासकीय अधिवक्ता (AGA) श्री आलोक तिवारी ने दलील दी कि आवेदक सहित अधिकारियों का एक “सुनियोजित नेटवर्क” अपराध में शामिल है। उन्होंने केस डायरी के अंशों का हवाला देते हुए बताया कि एक ट्रक जिसका वजन पहले 44,370 किलोग्राम दिखाया गया था, दोबारा वजन कराने पर 66,340 किलोग्राम पाया गया, जो वजन कम दिखाने की जानबूझकर रची गई साजिश को दर्शाता है।

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राज्य ने कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) पेश किए, जिसमें अभियुक्तों के बीच लगातार टेलीफोन पर बातचीत दिखाई गई। यह बताया गया कि सह-अभियुक्त राजीव कुमार बंसल ने सह-अभियुक्त मनोज कुमार भारद्वाज से 211 बार बात की, जिसने बदले में आवेदक से 292 बार बात की। इसके अलावा, आवेदक की बातचीत रितेश कुमार पांडे उर्फ शानू सहित अन्य सह-अभियुक्तों से भी पाई गई।

कोर्ट की टिप्पणियाँ और विश्लेषण

न्यायमूर्ति पवार ने जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री, जिसमें स्वतंत्र गवाह आशुतोष दुबे के बयान और बरामद मोबाइल फोन व नोटबुक शामिल हैं, का परीक्षण किया। कोर्ट ने नोट किया कि सह-अभियुक्त से बरामद निजी रजिस्टर में विभिन्न ट्रकों से संबंधित कई सौ प्रविष्टियां थीं, जो “अपराध में बड़ी संख्या में व्यक्तियों की संलिप्तता” का संकेत देती हैं।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दविंदर कुमार बंसल बनाम पंजाब राज्य [(2025) 4 SCC 493] के फैसले पर महत्वपूर्ण भरोसा जताया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि किसी आरोपी पर मुकदमा चलाने के लिए रिश्वत का वास्तविक लेन-देन होना अनिवार्य शर्त नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उद्धृत करते हुए हाईकोर्ट ने कहा:

“भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराध में अग्रिम जमानत देने के लिए मापदंडों को पूरा करना आवश्यक है। अग्रिम जमानत केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दी जा सकती है, जहां कोर्ट को प्रथम दृष्टया यह लगे कि आवेदक को झूठा फंसाया गया है या आरोप राजनीति से प्रेरित या तुच्छ हैं।”

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कोर्ट ने विवेचना अधिकारी की इस बात का भी संज्ञान लिया कि आरटीओ कार्यालय, लखनऊ में तैनात होने के बावजूद आवेदक फरार चल रहा था और जांच में सहयोग नहीं कर रहा था।

निर्णय

अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार ने कहा कि “सिंडिकेट की व्यापकता और प्रभाव” तथा आवेदक व सह-अभियुक्तों के बीच 100 से अधिक बार हुई सक्रिय बातचीत को देखते हुए, यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदक को झूठा फंसाया गया है।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“अब तक की जांच में एकत्र की गई सामग्री को देखते हुए… यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदक को केवल उसकी प्रतिष्ठा धूमिल करने के लिए झूठा फंसाया गया है। इस मामले में गहन जांच की आवश्यकता है।”

केस विवरण:

  • केस शीर्षक: अनुज कुमार निषाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
  • केस संख्या: क्रिमिनल मिसलेनियस अग्रिम जमानत याचिका (U/S 482 BNSS) संख्या 2046/2025
  • पीठ: न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार
  • आवेदक के वकील: वरुण चंद्रा, अवधेश कुमार सिंह सूर्यवंशी, विवेक वर्मा
  • विपक्षी (राज्य) के वकील: श्री आलोक तिवारी (एजीए)

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