इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह दलित व्यक्ति हीरा लाल की कथित हिरासत मृत्यु के मामले में दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करे।
बुधवार को अधिवक्ता मंच और अन्य दो लोगों द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति संतोष राय की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को उपयुक्त पीठ के समक्ष तय की है।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, हीरा लाल, जो कि बदौना के नरेपर गांव का एक मजदूर था, को पुलिस ने 27 मई को चोरी के एक मामले में घर से उठाया था। आरोप है कि पुलिस हिरासत में ही उसे प्रताड़ित किया गया और उसकी मौत हो गई। जबकि पुलिस ने दावा किया कि उसकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई।

पिटिशन में यह भी कहा गया कि परिवार को हिरासत के दौरान हीरा लाल से मिलने नहीं दिया गया और मौत के बाद भी शव परिवार को नहीं सौंपा गया। आरोप है कि पुलिस ने बिना अनुमति शव का दाह संस्कार दारागंज घाट पर कर दिया।
याचिका में घटना को “पुलिस स्टेशन परिसर में बर्बर हिरासत हत्या” बताते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करार दिया गया। इसमें मांग की गई है—
- एक स्वतंत्र और निष्पक्ष उच्चस्तरीय जांच समिति का गठन किया जाए, जिसकी अध्यक्षता हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करें।
- जांच हाईकोर्ट की देखरेख में निर्धारित समयसीमा में पूरी हो।
- मृतक के परिवार को ₹25 लाख मुआवजा दिया जाए।
गंभीर आरोपों को देखते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अब देखना होगा कि अदालत स्वतंत्र जांच के आदेश देती है या नहीं तथा मृतक के परिजनों को मुआवजा मिलता है या नहीं।