इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: समान मामले के लंबित होने पर अपील में देरी को किया माफ

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वाणिज्यिक अपील दाखिल करने में हुई 154 दिनों की देरी को माफ करते हुए एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने कहा कि जब एक ही तरह के आदेश के खिलाफ उन्हीं पक्षकारों के बीच एक अन्य अपील समय पर दायर की जा चुकी हो, तो दूसरी अपील को केवल देरी के आधार पर खारिज करना न्यायोचित नहीं होगा। न्यायालय ने यह आदेश मेसर्स जय केमिकल वर्क्स द्वारा दायर एक विलंब माफी प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की धारा 13(1-ए) के तहत वाणिज्यिक न्यायालय, कानपुर नगर के 19 सितंबर, 2024 के एक आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। निचली अदालत ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VII नियम 10 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए मेसर्स जय केमिकल वर्क्स (अपीलकर्ता) द्वारा मेसर्स साई केमिकल्स (प्रतिवादी) के खिलाफ दायर वाणिज्यिक वाद संख्या 3/2020 में वाद पत्र वापस करने का निर्देश दिया था।

यह अपील अप्रैल 2025 में दायर की गई, जिसमें 154 दिनों की देरी हुई थी। अपीलकर्ता ने इस देरी को माफ करने के लिए परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत एक आवेदन दायर किया।

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देरी के लिए अपीलकर्ता के तर्क

विलंब माफी के समर्थन में दिए गए हलफनामे में, अपीलकर्ता ने देरी का कारण अपने प्रोप्राइटर श्री जय कुमार की गंभीर बीमारी को बताया। यह कहा गया कि प्रोप्राइटर अस्वस्थता और पेट की समस्याओं के कारण इलाज करवा रहे थे, जिससे उनका व्यवसाय प्रभावित हुआ और वह मामले पर नज़र नहीं रख सके। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके स्थानीय वकील ने उन्हें निचली अदालत के आदेश के बारे में सूचित नहीं किया था।

अपीलकर्ता के अनुसार, फरवरी-मार्च 2025 में एक नए वकील को नियुक्त किया गया, जिन्होंने जांच करने पर पाया कि दो अन्य मामले लंबित थे, लेकिन वर्तमान मामला 19 सितंबर, 2024 को ही तय हो चुका था। इसके बाद, नए वकील की सलाह पर यह अपील दायर की गई।

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अपीलकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोविंद सिंह ने तर्क दिया कि देरी वास्तविक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण हुई थी, जिसके समर्थन में चिकित्सा साक्ष्य भी प्रस्तुत किए गए। उन्होंने इस तथ्य की ओर भी ध्यान दिलाया कि वाणिज्यिक न्यायालय ने उन्हीं पक्षकारों के बीच एक अन्य वाद (संख्या 31/2023) में 29 मार्च, 2025 को एक समान आदेश पारित किया था, और उस आदेश के खिलाफ अपील (संख्या 18/2025) समय सीमा के भीतर दायर की गई थी और पहले से ही इस अपील के साथ संबद्ध थी।

प्रतिवादी का विरोध

प्रतिवादी के वकील ने आवेदन का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि अपीलकर्ता ने भ्रामक बयान दिए हैं। उन्होंने दलील दी कि अपीलकर्ता के प्रोप्राइटर ने विवादित आदेश पारित होने के बाद उसी वाणिज्यिक न्यायालय के समक्ष एक अन्य मामले में न केवल नियमित रूप से उपस्थिति दर्ज कराई, बल्कि 10 जनवरी, 2025 को एक हलफनामा भी दायर किया था। प्रतिवादी के अनुसार, यह बीमारी और जानकारी के अभाव के तर्क का खंडन करता है।

न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलों और कानूनी मिसालों का विश्लेषण किया। न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि “पर्याप्त कारण” (sufficient cause) की उदार व्याख्या की जानी चाहिए ताकि न्याय हो सके, और इसका निर्धारण प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है।

न्यायालय ने इस मामले में कई कारकों को महत्वपूर्ण पाया। पीठ ने टिप्पणी की: “…यह उचित नहीं लगता कि एक मामले में वाद पत्र वापस करने के आदेश की वैधता की जांच गुण-दोष के आधार पर की जाए और दूसरे मामले में, उन्हीं आधारों पर दिए गए बिल्कुल समान आदेश को केवल अपील दाखिल करने में हुई देरी के कारण खारिज कर दिया जाए।”

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न्यायालय ने नए वकील द्वारा आदेश की जानकारी प्राप्त करने की अपीलकर्ता की दलील को “ठोस और विश्वास करने योग्य” पाया। पीठ ने यह भी माना कि चिकित्सा रिपोर्टों को बिना किसी ठोस खंडन के “पूरी तरह से झूठा” नहीं कहा जा सकता।

निर्णय

अपने विश्लेषण के अंत में, न्यायालय ने माना कि प्रोप्राइटर की बीमारी, आदेश की जानकारी मिलने का विश्वसनीय स्पष्टीकरण, और यह “अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू कि एक समान आदेश को चुनौती देने वाली अपील समय पर दायर की गई है,” इन सभी को मिलाकर देरी के लिए एक पर्याप्त और संतोषजनक कारण बनता है।

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अदालत ने आवेदन को स्वीकार करते हुए 154 दिनों की देरी को माफ कर दिया। 

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