बार काउंसिल ऑफ इंडिया को जिला बार एसोसिएशन के चुनाव रोकने का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 दिनों के अंतराल की शर्त के साथ दी चुनाव की अनुमति

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि न तो बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) और न ही स्टेट बार काउंसिल के पास जिला बार एसोसिएशन के चुनावों को विनियमित या नियंत्रित करने का कोई वैधानिक (statutory) अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि जिला बार एसोसिएशन के चुनाव उनके अपने उपनियमों (Bye-laws) द्वारा शासित होते हैं।

न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने उस निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका का निस्तारण किया, जिसके तहत उत्तर प्रदेश भर में बार एसोसिएशन के चुनावों पर अस्थायी रोक लगा दी गई थी। कोर्ट ने माना कि यद्यपि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पास स्टेट बार काउंसिल पर पर्यवेक्षण (supervision) का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार स्वतंत्र बार एसोसिएशनों के चुनाव कार्यक्रम को नियंत्रित करने तक विस्तृत नहीं है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह याचिका मो. आरिफ सिद्दीकी द्वारा दायर की गई थी, जो एक अधिवक्ता हैं और बनारस बार एसोसिएशन, वाराणसी के सदस्य हैं। याचिकाकर्ता आगामी 2025-26 के बनारस बार एसोसिएशन चुनाव में अध्यक्ष पद के संभावित उम्मीदवार हैं। वे उत्तर प्रदेश बार काउंसिल (प्रतिवादी संख्या 3) द्वारा जारी एक निर्देश से व्यथित थे।

25 अक्टूबर 2025 को, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (प्रतिवादी संख्या 2) के आदेशों पर कार्रवाई करते हुए, स्टेट बार काउंसिल ने उत्तर प्रदेश के सभी बार एसोसिएशनों को 15 नवंबर 2025 से फरवरी 2026 की अवधि के दौरान चुनाव न कराने या अधिसूचना जारी न करने का निर्देश दिया था। इस रोक का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना बताया गया था कि “उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की चुनावी प्रक्रिया बिना किसी बाधा या उसी समय प्रस्तावित बार एसोसिएशन के चुनावों के टकराव के बिना संपन्न हो सके।”

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दलीलें और कानूनी तर्क

सुनवाई के दौरान, स्टेट बार काउंसिल के वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि सुप्रीम कोर्ट में विजय पाल सिंह तोमर बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया नामक एक समान याचिका लंबित है। हालांकि, हाईकोर्ट ने नोट किया कि उक्त याचिका का निस्तारण 5 दिसंबर 2025 को कर दिया गया था, जिसमें याचिकाकर्ता को एम. वर्धन बनाम भारत संघ और अन्य में चल रही मुख्य कार्यवाही में शामिल होने की छूट दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट के एम. वर्धन मामले में 18 नवंबर 2025 के आदेश का अवलोकन करने पर, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि शीर्ष अदालत के समक्ष विवाद “स्टेट बार काउंसिल के निष्पक्ष, पारदर्शी और समय पर चुनाव कराने” के इर्द-गिर्द घूमता है, न कि जिला बार एसोसिएशनों के चुनावों के बारे में। खंडपीठ ने टिप्पणी की कि “अपने स्वयं के उपनियमों द्वारा शासित” जिला बार एसोसिएशन के चुनाव सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले का विषय नहीं प्रतीत होते हैं।

कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया से विशेष रूप से उस वैधानिक अधिकार के बारे में पूछा जिसके तहत उसने स्टेट बार काउंसिल को जिला बार एसोसिएशन के चुनावों पर रोक लगाने का निर्देश दिया था। BCI के वकील ने निम्नलिखित का हवाला दिया:

  • एडवोकेट्स एक्ट की धारा 7(g): जो BCI को स्टेट बार काउंसिल पर सामान्य पर्यवेक्षण और नियंत्रण का अधिकार देती है।
  • एडवोकेट्स एक्ट की धारा 48-B: जो BCI को अपने सामान्य पर्यवेक्षण के प्रयोग में स्टेट बार काउंसिल को आवश्यक निर्देश देने का अधिकार देती है।
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स्टेट बार काउंसिल का तर्क था कि उसने BCI के निर्देशों के अनुपालन में एसोसिएशनों को निर्देश जारी किए थे। जब जिला बार एसोसिएशनों पर ऐसे निर्देशों को लागू करने के अधिकार पर जोर दिया गया, तो प्रतिवादी पक्ष ने “यूपी के बार एसोसिएशनों के मॉडल उपनियमों” का उल्लेख किया।

कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन

हाईकोर्ट ने एसोसिएशन के चुनावों को रोकने की शक्ति के संबंध में प्रतिवादियों की दलीलों को खारिज कर दिया। खंडपीठ ने BCI की पर्यवेक्षी शक्तियों की सीमा को स्पष्ट करते हुए कहा:

“इन परिस्थितियों में, इस कोर्ट की राय है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पास बार एसोसिएशन के चुनावों को नियंत्रित या विनियमित करने का अधिकार नहीं था, जो उनके अपने उपनियमों द्वारा शासित होते हैं। उनके पास स्टेट बार काउंसिल को उक्त पत्र जारी करने का अधिकार था, लेकिन स्टेट बार काउंसिल के पास मौजूदा कानून के तहत राज्य के बार एसोसिएशनों को उक्त अवधि के लिए अपने चुनाव रोकने का निर्देश पारित करने का कोई अधिकार नहीं था।”

कोर्ट ने जोर देकर कहा कि स्टेट बार काउंसिल के पास “किसी भी क़ानून या नियमों का कोई अधिकार नहीं है, जिससे वे बार एसोसिएशन के चुनाव को विनियमित या नियंत्रित कर सकें।”

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फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका का निस्तारण करते हुए चुनाव कराने पर लगी रोक को हटा दिया। कोर्ट ने संबंधित बार एसोसिएशन को “सख्ती से अपने उपनियमों के अनुसार” अपनी चुनावी प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी।

हालाँकि, प्रतिवादियों द्वारा उठाए गए चुनावी कार्यक्रमों के टकराव की व्यावहारिक चिंता को दूर करने के लिए, कोर्ट ने चुनावों के समय के संबंध में एक विशिष्ट शर्त लगाई। खंडपीठ ने निर्देश दिया:

“…चूंकि स्टेट बार काउंसिल के चुनाव भी अधिसूचित किए गए हैं, इसलिए, बार एसोसिएशनों के चुनावों के कार्यक्रम को अधिसूचित करते समय, वे यह सुनिश्चित करेंगे कि यूपी बार काउंसिल और बार एसोसिएशन के चुनाव कार्यक्रम के बीच कोई टकराव न हो और दोनों चुनावों के बीच दस दिन का अंतर होना चाहिए।”

केस विवरण:

  • केस टाइटल: मो. आरिफ सिद्दीकी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 5 अन्य
  • केस नंबर: रिट – सी नंबर 40685 ऑफ 2025
  • कोरम: न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता
  • याचिकाकर्ता के वकील: बैरिस्टर सिंह
  • प्रतिवादियों के वकील: सी.एस.सी., अशोक कुमार तिवारी, साई गिरिधर, कृतिका सिंह (एसीएससी), प्रियंका मिड्ढा (एसीएससी), मनोज कुमार मिश्रा (एससी)

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