इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: शैक्षणिक संस्थानों के परिसर में व्यावसायिक गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध, सरकार को सर्कुलर जारी करने का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश के सभी शैक्षणिक संस्थानों की अचल संपत्तियों, जिसमें उनके खेल के मैदान भी शामिल हैं, पर किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियों जैसे मेले, प्रदर्शनी या व्यापारिक कार्यक्रमों के आयोजन पर रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस संबंध में एक महीने के भीतर एक स्पष्ट सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया है। यह निर्णय एक सरकारी सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज के मैदान में व्यावसायिक मेले के आयोजन के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर आया है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता गिरिजा शंकर द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL संख्या 542/2025) में हमीरपुर जिले के राठ स्थित ब्रह्मानंद डिग्री कॉलेज के परिसर में आयोजित हो रहे एक व्यावसायिक मेले को रोकने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया कि यह संस्थान बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी से संबद्ध एक सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेज है, और इसका परिसर केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है।

याचिका के अनुसार, पिछले वर्ष से कॉलेज के प्राचार्य की शह पर संस्थान के खुले मैदान में एक व्यावसायिक मेले का आयोजन किया जा रहा था। इस वर्ष भी 17 जनवरी, 2025 से एक बड़े पैमाने पर मेले का आयोजन शुरू हुआ, जिसमें कई व्यावसायिक दुकानें और स्टॉल लगाए गए थे।

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पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता के वकील, आजाद खान ने तर्क दिया कि मेले का आयोजन हाईकोर्ट के 3 मार्च, 2020 के एक आदेश (रिट-सी संख्या 7500/2020 में) का सीधा उल्लंघन था। उस पुराने आदेश में राज्य के सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि वे शैक्षणिक संस्थानों की संपत्तियों का उपयोग किसी भी निजी या व्यावसायिक उद्देश्य, जैसे विवाह समारोहों, के लिए न करने दें। उस आदेश के अनुपालन में, निदेशक (उच्च शिक्षा) ने 9 जून, 2020 को सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को कड़ाई से पालन करने के लिए एक पत्र भी जारी किया था।

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प्रतिवादियों, जिनमें कॉलेज के प्राचार्य (प्रतिवादी संख्या 4) और राज्य सरकार शामिल थे, ने शुरू में यह दलील दी कि याचिका निरर्थक हो गई है, क्योंकि 15 जनवरी, 2025 से 10 मार्च, 2025 तक चलने वाला मेला पहले ही समाप्त हो चुका था। प्राचार्य ने अपने हलफनामे में कहा कि मेले की अनुमति प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और बाद में उप-जिलाधिकारी (एसडीएम), राठ द्वारा दी गई थी। यह भी प्रस्तुत किया गया कि आयोजक ने एक नोटरीकृत हलफनामा देकर यह आश्वासन दिया था कि आयोजन से शैक्षणिक गतिविधियों में कोई बाधा नहीं आएगी।

एसडीएम, राठ ने एक अलग हलफनामे में बताया कि उन्होंने अनुमति इसलिए दी क्योंकि वे कथित तौर पर संस्थागत मैदानों के गैर-शैक्षिक उपयोग पर लगे प्रतिबंध से अनभिज्ञ थे, एक दलील जिसे बाद में अदालत ने “पूरी तरह से दिखावटी” कहकर खारिज कर दिया।

न्यायालय का विश्लेषण

हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों के इस तर्क को खारिज कर दिया कि याचिका निरर्थक हो गई थी। अदालत ने टिप्पणी की कि “इस कार्यवाही में शामिल मुख्य मुद्दा महत्वपूर्ण सार्वजनिक महत्व का है।”

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27 अप्रैल, 2011 के सरकारी आदेश पर प्रतिवादियों के भरोसे को संबोधित करते हुए, अदालत ने इस तर्क को “स्पष्ट रूप से एक दिखावा” पाया। फैसले में स्पष्ट किया गया कि उक्त सरकारी आदेश का “शैक्षणिक संस्थानों की संपत्तियों के उपयोग से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए है।” पीठ ने पाया कि प्रतिवादियों ने अपने उद्देश्य के लिए G.O. से जुड़े आधिकारिक अनुमति पत्र (फॉर्म-बी) में ‘राजनीतिक आयोजन’ जैसे शब्दों को ‘प्रदर्शनी’ से बदल दिया था।

अदालत ने तस्वीरों के साक्ष्य से पाया कि ‘स्वामी ब्रह्मानंद मेला महोत्सव’ नामक इस आयोजन में बड़े पैमाने पर व्यावसायिक गतिविधियाँ शामिल थीं, जिनमें “बड़े झूले, आइस-कैंडी/आइस-पॉप्सिकल्स जैसी दुकानें और स्टॉल, कपड़ों की बिक्री… और कई अन्य समान व्यावसायिक गतिविधियाँ” शामिल थीं।

संस्थागत बुनियादी ढांचे के महत्व पर जोर देते हुए, अदालत ने कहा कि खेल का मैदान “शैक्षणिक संस्थानों को दी गई संबद्धता/मान्यता की एक अनिवार्य विशेषता है।” पीठ ने एक स्पष्ट सिद्धांत निर्धारित करते हुए कहा:

“शैक्षणिक संस्थान केवल शिक्षा प्रदान करने के लिए हैं और ऐसी संस्थाओं से संबंधित भूमि और भवन, जिसमें उनके खेल के मैदान भी शामिल हैं, को किसी भी नाम के तहत किसी भी व्यावसायिक गतिविधि, जैसे प्रदर्शनी, व्यापार मेले या अन्य प्रकार के मेले, या एक या अन्य वस्तुओं और सामानों आदि की बिक्री के लिए उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।”

अंतिम निर्णय और निर्देश

अपने अंतिम फैसले में, हाईकोर्ट ने माना कि केवल मेले के समाप्त हो जाने से मुकदमे का कारण समाप्त नहीं हो गया। न्यायालय ने एक निश्चित फैसला सुनाया:

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“…हम यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में शैक्षणिक संस्थानों की अचल संपत्तियों, जिसमें उनके खेल के मैदान भी शामिल हैं, चाहे वे उसी परिसर का हिस्सा हों या कहीं और स्थित हों, को किसी भी नाम से किसी भी व्यावसायिक गतिविधियों, जैसे प्रदर्शनी, व्यापार मेले या अन्य प्रकार के मेलों, या एक या अन्य वस्तुओं और सामानों आदि की बिक्री के लिए उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।”

अदालत ने निम्नलिखित निर्देशों के साथ याचिका का निस्तारण किया:

  1. राज्य सरकार को एक महीने के भीतर अदालत के फैसले के अनुरूप सभी जिला प्रशासनों, पुलिस प्रशासनों और शैक्षणिक संस्थानों को एक “स्पष्ट और असंदिग्ध सर्कुलर” जारी करने का निर्देश दिया जाता है।
  2. हमीरपुर जिले के राठ में ब्रह्मानंद डिग्री कॉलेज के खेल के मैदान को भविष्य में किसी भी व्यावसायिक गतिविधियों के लिए उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  3. हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को आवश्यक अनुपालन के लिए इस आदेश की एक प्रति राज्य सरकार के मुख्य सचिव को भेजने का निर्देश दिया गया।

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