इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को मथुरा स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रशासन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाए गए ट्रस्ट अध्यादेश को लेकर चल रही सुनवाई को स्थगित कर दिया। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 6 अगस्त तय की है।
यह अध्यादेश—उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025—मंदिर के नियंत्रण और देखरेख के लिए एक सरकारी ट्रस्ट के गठन का प्रावधान करता है।
जब यह मामला न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की अदालत में आया, तब राज्य सरकार के वकील ने जानकारी दी कि इस अध्यादेश की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और मामला वहां लंबित है। इसके बाद हाईकोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी और राज्य सरकार को सुझाव दिया कि वह अध्यादेश में संशोधन पर विचार करे, विशेष रूप से उन प्रावधानों पर जो ट्रस्ट में सरकारी अधिकारियों को शामिल करने से संबंधित हैं।

कोर्ट का कहना था कि अध्यादेश के माध्यम से सरकार मंदिर पर नियंत्रण स्थापित करना चाहती है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता और पूजा पद्धतियों के प्रबंधन का अधिकार देता है।
इससे पहले 21 जुलाई को कोर्ट द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी संजय गोस्वामी ने राज्य सरकार द्वारा अध्यादेश जारी करने की वैधानिकता पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा कि श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी मंदिर है और इसकी धार्मिक परंपराएं स्वामी हरिदास जी के वंशजों द्वारा निभाई जा रही हैं।
गोस्वामी ने अध्यादेश की धारा 5 का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके अनुसार ट्रस्ट में नामित ट्रस्टी और पदेन ट्रस्टी दोनों होंगे। जहां नामित ट्रस्टी में वैष्णव परंपरा के संत, मठाधीश और धर्माचार्य होंगे, वहीं पदेन ट्रस्टी में मथुरा के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, नगर आयुक्त, यूपी ब्रज तीर्थ विकास परिषद के सीईओ और धार्मिक कार्य विभाग के अधिकारी जैसे सरकारी अधिकारी शामिल होंगे।
उन्होंने सरकारी अधिकारियों की इस नियुक्ति को अनुचित करार दिया, और कहा कि यह राज्य सरकार की पीछे के रास्ते मंदिर पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश है, जो कि अनुचित और असंवैधानिक है।
गोस्वामी का तर्क था कि यह अध्यादेश हिंदू समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर सीधा अतिक्रमण है, क्योंकि यह मंदिर निजी सम्पत्ति है और उसकी परंपरागत देखरेख स्वामी हरिदास जी के उत्तराधिकारियों द्वारा की जा रही है।