इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी आरोपी के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 82 के तहत फ़रार घोषित करने का नोटिस जारी हो चुका है और वह फ़रार है, तो ऐसे व्यक्ति को अग्रिम जमानत का अधिकार नहीं है।
न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की एकलपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कानपुर नगर परिषद सदस्य प्रदीप मिश्रा की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की जा रही है।
कानपुर नगर कोतवाली में दर्ज एफआईआर के अनुसार, मिश्रा पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर ज़मीन के पंजीकरण में फर्जी हस्ताक्षरों का इस्तेमाल किया और लेखपाल की फर्जी रिपोर्ट का सत्यापन किया।

सुनवाई के दौरान मिश्रा के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल का अपराध से कोई लेना-देना नहीं है और उन्होंने केवल अपने चचेरे भाइयों, विपिन मिश्रा और अमित सिंह, के हस्ताक्षर सत्यापित किए थे। उन्होंने कहा कि मिश्रा के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है और वह जांच में पूरा सहयोग करेंगे, इसलिए उन्हें राहत मिलनी चाहिए।
वहीं, शिकायतकर्ता के वकील ने अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि मिश्रा फ़रार हैं और उनके खिलाफ कुर्की की कार्यवाही भी शुरू हो चुकी है। ऐसे में उन्हें अग्रिम जमानत का अधिकार नहीं दिया जा सकता।
हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि जो आरोपी क़ानूनी प्रक्रिया से बच रहा हो और जिसे धारा 82 CrPC के तहत फ़रार घोषित किया गया हो, वह अग्रिम जमानत पाने का हकदार नहीं है। इस आधार पर अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।
यह आदेश इस सिद्धांत को दोहराता है कि जो आरोपी अदालत और क़ानून से भाग रहा हो, वह न्यायालय से संरक्षण पाने का हकदार नहीं हो सकता।