इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एग्रीमेंट टू सेल (बिक्री का अनुबंध) “धन या अन्य संपत्ति को सुरक्षित करने वाला दस्तावेज़” है। इसलिए, इसके रद्दीकरण के लिए दायर मुकदमे में कोर्ट फीस संपत्ति के मूल्य के अनुसार यानी एड वेलोरम आधार पर देनी होगी, जो कोर्ट फीस एक्ट, 1870 की धारा 7(iv-A) (जैसा कि उत्तर प्रदेश में लागू है) के तहत आती है।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की पीठ ने इस कानूनी प्रश्न का निपटारा किया, जिस पर पहले अलग-अलग न्यायिक मत आ चुके थे। इस फैसले में Altaf Husain बनाम VIth Additional District Judge, सहारनपुर (2013) और Suman Lata Agrawal बनाम उत्तर प्रदेश स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (2020) के एकल पीठ के निर्णयों को पलट दिया गया, जिनमें कहा गया था कि ऐसे मुकदमों पर सेकेंड शेड्यूल के आर्टिकल 17(iii) के तहत तयशुदा फीस लगेगी।
मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला Surendra Kumar बनाम Shanti Devi में आया था, जहां एकलपीठ ने Altaf Husain और Suman Lata Agrawal मामलों की वैधता पर सवाल उठाते हुए इसे बड़ी बेंच के पास भेजा था। पहले के फैसले Smt. Bibbi बनाम Sugan Chand (1968) के पूर्णपीठ के निर्णय पर आधारित थे, जो कि बिक्री विलेख (सेल डीड) पर था, न कि एग्रीमेंट टू सेल पर।
याचिका में दो प्रश्न रखे गए थे:
- क्या पंजीकृत एग्रीमेंट टू सेल धारा 7(iv-A) में प्रयुक्त “धन या अन्य संपत्ति को सुरक्षित करने वाला दस्तावेज़” कहलाएगा?
- क्या ऐसे एग्रीमेंट को रद्द करने की याचिका पर कोर्ट फीस धारा 7(iv-A) के तहत लगेगी या आर्टिकल 17(iii) के तहत?
पक्षकारों की दलीलें
याची के वकील का कहना था कि एग्रीमेंट टू सेल न तो कोई संपत्ति सुरक्षित करता है और न ही पैसा, इसलिए इसे रद्द करने पर आर्टिकल 17(iii) के तहत तयशुदा फीस देनी चाहिए। बार के कई वरिष्ठ सदस्यों ने भी इस पक्ष का समर्थन किया।
वहीं, प्रतिवादी के वकील और उत्तर प्रदेश राज्य के स्टैंडिंग काउंसिल का कहना था कि एग्रीमेंट टू सेल न केवल संपत्ति बल्कि पैसा भी सुरक्षित करता है, और ऐसे मुकदमों में धारा 7(iv-A) के तहत एड वेलोरम कोर्ट फीस देनी अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 17 सेकेंड शेड्यूल में सिर्फ शेष (residuary) मामलों के लिए है, जबकि यहां विशेष प्रावधान (section 7(iv-A)) मौजूद है।
कोर्ट की विवेचना और निष्कर्ष
न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह द्वारा लिखित निर्णय में बेंच ने कानून की विस्तार से विवेचना की:
क्या एग्रीमेंट टू सेल ‘इंस्ट्रूमेंट’ है?
कोर्ट ने माना कि भले ही कोर्ट फीस एक्ट में ‘इंस्ट्रूमेंट’ की परिभाषा न हो, लेकिन ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट और इंडियन स्टाम्प एक्ट में यह व्यापक रूप से परिभाषित है। कोर्ट ने U.P. अमेंडमेंट के तहत स्टाम्प एक्ट के शेड्यूल-I B के आर्टिकल 5 का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें विशेष रूप से एग्रीमेंट टू सेल शामिल है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा, “कोई संदेह नहीं कि एग्रीमेंट टू सेल निश्चित रूप से एक इंस्ट्रूमेंट है, और कोर्ट फीस एक्ट के लिए भी इसे ऐसा माना जाएगा।”
क्या एग्रीमेंट टू सेल धन या संपत्ति ‘सिक्योर’ करता है?
याची का तर्क था कि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 54 के अनुसार, बिक्री का अनुबंध अपने आप में किसी अधिकार का सृजन नहीं करता, इसलिए यह ‘सिक्योर’ नहीं करता। कोर्ट ने इस तर्क को नकारते हुए कहा कि कोर्ट फीस एक्ट को उसके शब्दों के सामान्य अर्थ और उद्देश्य के अनुसार पढ़ा जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि भले ही एग्रीमेंट से तत्काल स्वामित्व का हस्तांतरण न हो, यह पक्षकारों के लिए कानूनी अधिकार और दायित्व सुनिश्चित करता है। खरीदार के लिए यह विक्रेता से बिक्री की गारंटी देता है, और विक्रेता के लिए खरीदार से भुगतान की। निर्णय में कहा गया, “विक्रेता, कानूनन, संपत्ति को खरीदार के लिए ट्रस्ट के रूप में रखता है, और खरीदार, जिसने आंशिक भुगतान कर दिया है, को आश्वस्त किया जाता है कि तय समय में शेष भुगतान के बाद उसे संपत्ति मिल जाएगी।”
पूर्व फैसलों को पलटना
कोर्ट ने Altaf Husain के निर्णय को गलत माना और कहा कि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की व्याख्या को कोर्ट फीस एक्ट की शब्दावली तक सीमित करना उचित नहीं। इसके साथ ही Suman Lata Agrawal का निर्णय, जो Altaf Husain पर आधारित था, भी पलट दिया गया।
अंतिम निर्णय
बड़ी बेंच ने स्पष्ट किया:
- “एग्रीमेंट टू सेल, कोर्ट फीस एक्ट की धारा 7(iv-A) के प्रयोजनों के लिए, ‘धन या अन्य संपत्ति को सुरक्षित करने वाला दस्तावेज़’ है।”
- रद्दीकरण की याचिका में कोर्ट फीस धारा 7(iv-A) और उसकी व्याख्या के अनुसार देनी होगी, न कि सेकेंड शेड्यूल के आर्टिकल 17(iii) के तहत।
कोर्ट ने Altaf Husain और Suman Lata Agrawal के फैसलों को औपचारिक रूप से रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि मूल याचिका को इस निर्णय के अनुसार आगे विचार के लिए उपयुक्त कोर्ट में रखा जाए।