बॉम्बे हाई कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में सीमा पार गोलाबारी के दौरान जान गंवाने वाले एक अग्निवीर के परिवार को मिलने वाले लाभों को लेकर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है। अदालत ने कहा है कि वह इस याचिका पर केंद्र का पक्ष जानना चाहती है, जिसमें नियमित सैनिकों के परिजनों को मिलने वाले पेंशन और अन्य लाभ अग्निवीर के परिवार को न दिए जाने को चुनौती दी गई है।
न्यायमूर्ति रविंद्र घुगे की अध्यक्षता वाली पीठ ने रक्षा मंत्रालय को नोटिस जारी करते हुए इस मामले की अगली सुनवाई 15 जनवरी को तय की है। यह याचिका अग्निवीर मुरली नाइक की मां ज्योतिबाई नाइक ने दायर की है।
मुरली नाइक की 9 मई को जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में मौत हो गई थी, जब पाकिस्तान की ओर से भारी तोप और मोर्टार गोलाबारी की गई। यह घटना उस समय हुई जब भारत ने अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया था। इस आतंकी हमले में 26 लोगों की जान गई थी, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे। मुरली नाइक को जून 2023 में अग्निपथ योजना के तहत भारतीय सेना में भर्ती किया गया था।
याचिका में कहा गया है कि अग्निपथ योजना के तहत भर्ती किए गए अग्निवीर भी वही जिम्मेदारियां निभाते हैं और वही खतरे उठाते हैं, जो नियमित सैनिक उठाते हैं, खासकर सीमा और सक्रिय सैन्य अभियानों में। इसके बावजूद, अगर उनकी सेवा के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो उनके परिवारों को नियमित सैनिकों के परिजनों जैसी पेंशन और दीर्घकालिक कल्याणकारी सुविधाएं नहीं मिलतीं।
याचिका के अनुसार, शहीद अग्निवीर के परिवार को करीब एक करोड़ रुपये की अनुग्रह राशि तो मिलती है, लेकिन नियमित पारिवारिक पेंशन या अन्य स्थायी लाभ नहीं दिए जाते। इसे मनमाना और भेदभावपूर्ण बताते हुए याचिका में कहा गया है कि यह व्यवस्था नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
ज्योतिबाई नाइक ने अदालत को बताया कि बेटे की मृत्यु के बाद उन्होंने कई संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि उनके परिवार को भी नियमित सैनिकों के परिवारों की तरह लाभ दिए जाएं, लेकिन अब तक उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है।
याचिका में यह भी स्पष्ट किया गया है कि वह पूरी अग्निपथ योजना की वैधता को चुनौती नहीं दे रही हैं, बल्कि इस बात पर सवाल उठा रही हैं कि समान जोखिम और समान कर्तव्यों के बावजूद अग्निवीरों और नियमित सैनिकों के बीच लाभों को लेकर अलग-अलग व्यवहार क्यों किया जा रहा है। उनके अनुसार, यह वर्गीकरण न तो तर्कसंगत है और न ही उचित आधार पर किया गया है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 में सेना, नौसेना और वायुसेना में अल्पकालिक भर्ती के लिए अग्निपथ योजना लागू की थी। इस योजना के तहत 17 वर्ष छह महीने से 21 वर्ष की आयु के युवाओं को चार साल के लिए भर्ती किया जाता है, जिनमें से 25 प्रतिशत को आगे 15 साल की सेवा के लिए रखा जाता है। सरकार का तर्क है कि इससे सशस्त्र बलों की औसत आयु घटेगी, लेकिन योजना को लेकर सेवा शर्तों और लाभों पर लगातार सवाल उठते रहे हैं।
अब हाई कोर्ट इस मामले में केंद्र सरकार का जवाब मिलने के बाद आगे की सुनवाई करेगा।

