भारत सरकार ने एडवोकेट्स (संशोधन) विधेयक, 2025 प्रस्तुत किया है, जिसका उद्देश्य एडवोकेट्स अधिनियम, 1961 में संशोधन कर कानूनी पेशे में महत्वपूर्ण सुधार लाना है। यह विधेयक कानूनी शिक्षा को सशक्त बनाने, नैतिक कानूनी प्रथाओं को सुनिश्चित करने, अनुशासनात्मक तंत्र को मजबूत करने और भारत के कानूनी पेशे को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने पर केंद्रित है। मसौदा विधेयक को सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया गया है और इसमें हितधारकों से सुझाव मांगे गए हैं।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान
विधेयक में बार काउंसिल की संरचना में बदलाव, एडवोकेट्स के लिए कड़े अनुशासनात्मक नियम और कानूनी पेशे में पारदर्शिता बढ़ाने जैसे कई संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं। प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. कानूनी शिक्षा को सशक्त बनाना
- भारतीय बार काउंसिल (BCI) द्वारा कानूनी शिक्षा, अनुसंधान और पेशेवर विकास के लिए एक सलाहकार बोर्ड की स्थापना।
- कानूनी शिक्षा केंद्रों की मान्यता, जिससे विधि संस्थानों को आवश्यक मानकों को पूरा करना अनिवार्य होगा।
- स्नातक और स्नातकोत्तर विधि पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए अनिवार्य प्रवेश परीक्षा।
- एडवोकेट्स की शैक्षिक डिग्रियों की समय-समय पर जांच, जिससे फर्जी नामांकन को रोका जा सके।
- विदेशी कानून डिग्रियों को भारतीय अभ्यास के लिए निर्धारित शर्तों के तहत मान्यता।
2. नामांकन और कानूनी अभ्यास में सुधार
- बार परीक्षा अनिवार्य: भारतीय बार परीक्षा (AIBE) या BCI द्वारा निर्धारित अन्य परीक्षाएं एडवोकेट के रूप में नामांकन और कानूनी अभ्यास जारी रखने के लिए अनिवार्य होंगी।
- कानूनी पेशेवर की परिभाषा का विस्तार: इसमें कॉर्पोरेट संस्थानों, वैधानिक निकायों और विदेशी कानून कंपनियों में कार्यरत एडवोकेट्स को शामिल किया जाएगा।
- सत्यापन प्रमाणपत्र: राज्य बार काउंसिल्स के माध्यम से एडवोकेट्स के प्रमाणपत्रों और उनके अभ्यास स्थान का समय-समय पर सत्यापन।
- बार एसोसिएशन सदस्यता अनिवार्य: प्रत्येक एडवोकेट को उस बार एसोसिएशन में पंजीकृत होना अनिवार्य होगा, जहाँ वे अभ्यास करते हैं।
3. बार काउंसिल्स में संरचनात्मक सुधार
- बार काउंसिल चुनावों में मतदान और प्रत्याशी बनने के लिए योग्यताओं और अयोग्यता के मानदंड निर्धारित करना।
- तीन वर्ष या उससे अधिक की सजा पाने वाले एडवोकेट्स पर बार काउंसिल सदस्यता से प्रतिबंध।
- केंद्र सरकार द्वारा भारतीय बार काउंसिल (BCI) में तीन सदस्यों का नामांकन।
- BCI में वरिष्ठ महिला एडवोकेट्स में से दो महिला सदस्यों की अनिवार्य नियुक्ति।
- नवगठित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए बार काउंसिल्स का पुनर्गठन।
4. अनुशासनात्मक सुधार और नैतिक मानक
- व्यावसायिक कदाचार के लिए कड़ी सजा, जिसमें ₹3 लाख तक का जुर्माना और अभ्यास निलंबन शामिल है।
- एडवोकेट्स द्वारा हड़ताल और बहिष्कार पर सख्त नियम, उल्लंघन करने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई।
- सार्वजनिक शिकायत निवारण समिति: बार काउंसिल के भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतों के समाधान हेतु एक विशेष समिति का गठन।
- धोखाधड़ी रोकथाम: बिना वैध नामांकन के कानून का अभ्यास करने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई।
- कानूनी फर्मों और विदेशी वकीलों के नियमन, जिसमें विदेशी कानूनी कंपनियों के भारत में प्रवेश को नियंत्रित करने के लिए नियम शामिल हैं।
5. न्याय तक पहुंच में सुधार
- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिलाएँ, दिव्यांग व्यक्ति और आपदा पीड़ितों के लिए कानूनी सहायता और सहयोग।
- आर्थिक रूप से कमजोर एडवोकेट्स के लिए कल्याणकारी निधि और वित्तीय सहायता प्रावधान।
- एडवोकेट्स के लिए सतत कानूनी शिक्षा अनिवार्य, जिससे वे कानूनी प्रगति से अद्यतन रह सकें।
6. अनुशासनात्मक प्रक्रिया को त्वरित और पारदर्शी बनाना
- सभी अनुशासनात्मक कार्यवाही को दो वर्षों के भीतर पूरा करना अनिवार्य।
- यदि राज्य बार काउंसिल कोई कार्रवाई करने में विफल रहती है, तो मामले BCI को हस्तांतरित किए जाएंगे।
- झूठी और निराधार शिकायतों के लिए नए दंड प्रावधान, जिससे एडवोकेट्स को बेबुनियाद आरोपों से बचाया जा सके।
विधेयक का प्रभाव
1. पेशेवर मानकों को बढ़ावा
- अनिवार्य सत्यापन और पुनः प्रमाणन से उच्च नैतिक और पेशेवर मानक सुनिश्चित होंगे।
- अनुशासनात्मक उपायों को मजबूत करने से कदाचार और अनैतिक व्यवहार पर रोक लगेगी।
2. कानूनी शिक्षा का बेहतर नियमन
- मानकीकृत प्रवेश प्रक्रियाएँ और बेहतर शिक्षा गुणवत्ता से विधि डिग्रियों की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
- विदेशी कानून डिग्रियों को मान्यता देने से भारतीय वकीलों को अंतरराष्ट्रीय कानूनी अभ्यास में अधिक अवसर मिलेंगे।
3. पारदर्शिता और जवाबदेही
- सार्वजनिक शिकायत निवारण समिति से बार काउंसिल्स के कार्य में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
- बार एसोसिएशन में अनिवार्य पंजीकरण से अभ्यासरत एडवोकेट्स पर निगरानी रखना आसान होगा।
4. फर्जी एडवोकेट्स पर रोक
- कड़े नामांकन सत्यापन और अनिवार्य परीक्षाओं से फर्जी वकीलों के न्यायालयों में अभ्यास पर रोक लगेगी।
- बिना प्राधिकरण के कानून का अभ्यास करने वालों पर कड़ी सजा लागू होगी।
5. कानूनी पेशे में अनुशासन
- अवैध हड़ताल और बहिष्कार में संलिप्त एडवोकेट्स पर कड़ी कार्रवाई।
- अनुशासनात्मक मामलों का शीघ्र समाधान, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में देरी न हो।
निष्कर्ष
यदि यह विधेयक पारित होता है, तो यह भारत के कानूनी पेशे को आधुनिक बनाएगा, नैतिक मानकों को ऊँचा उठाएगा और कानूनी अभ्यास को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाएगा। हालांकि विधेयक में कड़े प्रावधान शामिल हैं, यह एडवोकेट्स के लिए बेहतर सुरक्षा और कल्याण की व्यवस्था भी करता है। सरकार इस ऐतिहासिक सुधार पर 28 फरवरी 2025 तक हितधारकों से सुझाव मांग रही है, जिससे सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से विधेयक को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
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