सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) किसी भी कानूनी फाइलिंग में गलत बयानी की जिम्मेदारी से यह कहकर नहीं बच सकते कि दस्तावेज़ किसी अन्य वकील द्वारा ड्राफ्ट किए गए थे। इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट नियमों के तहत AoR की भूमिका और जिम्मेदारियों को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड की जिम्मेदारियों पर जोर देते हुए कहा कि उनकी भूमिका केवल दस्तावेज़ों को कोर्ट में प्रस्तुत करने तक सीमित नहीं है। उन्हें यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि केस के सभी दस्तावेज़ सही तरीके से जांचे और सत्यापित किए गए हैं, चाहे वे किसी अन्य वकील द्वारा तैयार किए गए हों।
पीठ ने यह भी कहा कि AoR को यह सुनिश्चित करना होगा कि फाइल किए गए दस्तावेज़ों में सभी आवश्यक तथ्य शामिल हों और वे सही हों। यदि किसी भी विवरण को लेकर संदेह हो, तो AoR की जिम्मेदारी है कि वह या तो मुवक्किल या दस्तावेज़ तैयार करने वाले वकील से स्पष्टीकरण ले। यह सतर्कता अदालत में तथ्यों को छिपाने या गलत प्रस्तुत करने से बचने के लिए आवश्यक है।
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इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि AoR की जिम्मेदारी केवल दस्तावेज़ दाखिल करने तक सीमित नहीं है। उन्हें जरूरत पड़ने पर मामले को स्वतंत्र रूप से संभालने के लिए भी तैयार रहना चाहिए, विशेष रूप से जब नियुक्त वकील अनुपस्थित हो। कोर्ट ने उन AoR की आलोचना की जो केवल नाम मात्र के लिए अपने हस्ताक्षर देते हैं और केस की उचित निगरानी नहीं करते, जिससे न्यायिक प्रक्रिया की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि AoR किसी भी प्रकार की अनुचित या अनैतिक गतिविधियों में संलिप्त पाए जाते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट नियमों के ऑर्डर IV के रूल 10 के तहत उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। यह फैसला उन मामलों के संदर्भ में आया है, जिनमें वरिष्ठ वकीलों द्वारा कई माफी याचिकाओं में गलत बयान देने और महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने के आरोप लगे थे। साथ ही, यह निर्णय एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के आचरण और वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामांकन के मापदंडों से संबंधित मुद्दों को स्पष्ट करता है।