जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख हाईकोर्ट, श्रीनगर पीठ ने यह निर्णय दिया है कि यदि कोई वयस्क, अविवाहित बेटी शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम है, तो वह अपने पिता से जम्मू और कश्मीर दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 488 के अंतर्गत भरण-पोषण की हकदार नहीं है। न्यायालय ने ऐसी दो बेटियों के पक्ष में पारित किए गए भरण-पोषण आदेशों को निरस्त करते हुए कहा कि भरण-पोषण प्रदान करने के लिए जो वैधानिक शर्तें हैं, वे इस मामले में पूरी नहीं हुई थीं।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला अब्दुल रहीम भट की दो अविवाहित बेटियों और एक बेटे द्वारा 10.07.2014 को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, अनंतनाग के समक्ष दायर एक भरण-पोषण याचिका से उत्पन्न हुआ। याचिका फाइल संख्या 17/जीम के रूप में दर्ज की गई थी और इसमें CrPC की धारा 488 के अंतर्गत भरण-पोषण की मांग की गई थी। याचिका दाखिल किए जाने के समय तीनों बच्चे वयस्क हो चुके थे।
बाद में, अब्दुल रहीम भट, जो स्वयं को अपने बेटे पर आश्रित बता रहे थे, ने भी 31.12.2014 को उसी मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 488 CrPC के अंतर्गत एक अलग भरण-पोषण याचिका दायर की, जिसे फाइल संख्या 54/एम के रूप में पंजीकृत किया गया। इस याचिका को 28.08.2017 को स्वीकार कर लिया गया और मजिस्ट्रेट ने उनके बेटे समीर अहमद भट को उन्हें प्रति माह ₹2,000 देने का आदेश दिया, यह मानते हुए कि अब्दुल रहीम स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।
दूसरी ओर, उनके बच्चों द्वारा दायर याचिका लगभग पांच वर्षों तक लंबित रही और अंततः 09.04.2019 को निपटाई गई। इस आदेश द्वारा, मजिस्ट्रेट ने अब्दुल रहीम भट को उनकी दो अविवाहित बेटियों को 10.07.2014 से प्रभावी ₹1,200 प्रति माह प्रति बेटी भुगतान करने का निर्देश दिया।
इस आदेश से आहत होकर, अब्दुल रहीम भट ने प्राचार्य सत्र न्यायाधीश, अनंतनाग के समक्ष एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसे 26.02.2021 को खारिज कर दिया गया। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने CrPC की धारा 482 के अंतर्गत हाईकोर्ट का रुख किया और उसकी अंतर्निहित अधिकारिता का आह्वान किया।
धारा 488 CrPC की न्यायालय द्वारा व्याख्या
न्यायमूर्ति राहुल भारती ने जम्मू और कश्मीर CrPC की धारा 488 की व्याख्या की, जो उस समय प्रभावी थी। यह प्रावधान मजिस्ट्रेट को पत्नी, वैध या अवैध नाबालिग संतान, वैध या अवैध वयस्क संतान (यदि वह किसी शारीरिक या मानसिक दुर्बलता के कारण स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो), तथा माता-पिता को भरण-पोषण देने का आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है।
न्यायालय ने धारा 488(1)(ग) में वयस्क बच्चों के लिए निर्धारित वैधानिक सीमा को स्पष्ट किया:
“…उसकी वैध या अवैध संतान (जो विवाहित पुत्री नहीं है) जो वयस्क हो चुकी हो, यदि वह किसी शारीरिक या मानसिक दुर्बलता या चोट के कारण स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो…”
न्यायमूर्ति राहुल भारती ने कहा:
“धारा 488 का सामान्य अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि याचिकाकर्ता की दो अविवाहित बेटियां, जो वयस्क हैं और जिन्हें कोई शारीरिक/मानसिक दुर्बलता या चोट नहीं है जिससे वे स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हों, वे किसी भी प्रकार से धारा 488 CrPC का सहारा नहीं ले सकती थीं…”
हाईकोर्ट ने यह पाया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट और प्राचार्य सत्र न्यायाधीश — दोनों ही — इस आवश्यक कानूनी प्रावधान की उपेक्षा करते हुए याचिकाकर्ता को उनकी वयस्क बेटियों को भरण-पोषण देने का आदेश दे बैठे।
न्यायालय का निर्णय
न्यायालय ने निचली अदालतों के आदेशों को कानून सम्मत न मानते हुए उन्हें निरस्त कर दिया और याचिकाकर्ता अब्दुल रहीम भट के पक्ष में फैसला सुनाया:
“दोनों आदेश अवैध घोषित किए जाते हैं और इन्हें निरस्त किया जाता है। याचिका स्वीकार की जाती है। निस्तारित।”
मामले का विवरण
- मामले का नाम: अब्दुल रहीम भट बनाम ब्यूटी जान एवं अन्य
- मामला संख्या: CRM(M) No. 177/2022
- पीठ: न्यायमूर्ति राहुल भारती