एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने बिहार विधानसभा चुनावों से पहले भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा किए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
निर्वाचन आयोग ने 24 जून को विशेष पुनरीक्षण के निर्देश जारी किए थे, ताकि अपात्र नामों को हटाकर केवल पात्र मतदाताओं को सूची में रखा जा सके। आयोग ने इस कदम के पीछे शहरीकरण की तेज गति, उच्च प्रवासन दर, नए युवा मतदाताओं का जुड़ाव, मृतकों की रिपोर्टिंग में कमी और विदेशी नागरिकों के सम्मिलन की आशंका जैसे कारण गिनाए हैं।
हालांकि, ADR की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार), 325 और 326 (सर्वजन वयस्क मताधिकार) का उल्लंघन है। इसके अतिरिक्त, यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और निर्वाचक नियमावली, 1960 के प्रावधानों का भी उल्लंघन करता है।

याचिका में चेतावनी दी गई है कि आयोग का यह निर्देश बिना उचित प्रक्रिया और पर्याप्त सुरक्षा उपायों के, मतदाता सूची से मनमाने ढंग से नाम हटाने का रास्ता खोल सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर लोगों का मताधिकार छिन सकता है। “प्रलेखन की जटिल मांग, प्रक्रिया की कमी और अव्यवहारिक रूप से कम समयसीमा यह सुनिश्चित करती है कि यह अभ्यास त्रुटियों और अपवर्जन से भरा होगा,” भूषण ने याचिका में कहा।
ADR ने यह भी उल्लेख किया कि बिहार में पिछली बार ऐसा विशेष पुनरीक्षण 2003 में हुआ था और अब इसके समय और तात्कालिकता पर सवाल उठाए हैं। संस्था ने निर्वाचन आयोग के आदेश और संबंधित संचारों को रद्द करने की मांग की है।
वहीं निर्वाचन आयोग ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि यह विशेष पुनरीक्षण बूथ स्तर अधिकारियों द्वारा घर-घर सर्वेक्षण के माध्यम से किया जा रहा है और संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 के तहत सभी वैधानिक और संवैधानिक प्रावधानों का पालन किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई जल्द कर सकता है, जिसका प्रभाव बिहार में आगामी चुनावों और मतदाता सत्यापन प्रक्रिया पर पड़ सकता है।