गोद लिए गए बच्चे के अधिकार गोद लेने से पहले विधवा हिंदू मां द्वारा किए गए लेनदेन को प्रभावित नहीं करेंगे: सुप्रीम कोर्ट  

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि गोद लिया गया बच्चा हिंदू विधवा द्वारा गोद लेने से पहले किए गए लेनदेन को चुनौती नहीं दे सकता। श्री महेश बनाम संग्राम और अन्य (SLP (C) Nos. 10558-59 of 2024) मामले में दिए गए इस निर्णय में न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) के तहत विधवा की पूर्ण स्वामित्व अधिकारों को बरकरार रखा।  

न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने 2007 में विधवा द्वारा की गई बिक्री विलेख को वैध ठहराया, लेकिन 2008 में किए गए उपहार विलेख को कब्जा सौंपने में कमी के कारण अमान्य घोषित कर दिया। न्यायालय ने कहा, “गोद लिया गया बच्चा किसी व्यक्ति के पूर्व में अर्जित संपत्ति के अधिकारों को खत्म नहीं कर सकता।”  

मामले की पृष्ठभूमि  

Play button

यह मामला 1982 में भवकन्ना शाहापुरकर की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति को लेकर हुए विवाद से उत्पन्न हुआ। उनकी संपत्तियां उनकी दो पत्नियों, पार्वतीबाई और लक्ष्मीबाई, के बीच एक समझौता डिक्री के तहत विभाजित की गईं। पार्वतीबाई ने 1994 में श्री महेश को गोद लिया। इसके बाद, पार्वतीबाई ने 2007 में संपत्तियों (अनुसूची A) का एक हिस्सा बेचा और 2008 में अन्य संपत्तियों (अनुसूची B और C) को उपहार में दे दिया।  

READ ALSO  अदालतों के पास किसी भी निरोध आदेश के निष्पादन से पहले शिकायतों पर विचार करने की आवश्यक शक्ति है: हाईकोर्ट

महेश ने गोद लिए गए पुत्र के रूप में संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा करते हुए बिक्री और उपहार विलेख को चुनौती दी। ट्रायल कोर्ट ने उनके दावों को आंशिक रूप से सही ठहराया, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस निर्णय को उलट दिया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।  

प्रमुख मुद्दे  

1. गोद लेने के अधिकारों का दायरा:  

   क्या गोद लिया गया बच्चा गोद लेने से पहले किए गए गोद लेने वाले माता-पिता के लेनदेन को चुनौती दे सकता है?  

2. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14(1) का प्रभाव:  

   क्या विधवा द्वारा विरासत में मिली या अर्जित संपत्ति उनकी पूर्ण संपत्ति मानी जाएगी, जिससे उन्हें स्वतंत्र रूप से संपत्ति हस्तांतरित करने का अधिकार होगा?  

READ ALSO  बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने परिसर में सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया

3. लेनदेन की वैधता:  

   क्या पार्वतीबाई द्वारा किए गए बिक्री और उपहार विलेख गोद लिए गए पुत्र महेश पर बाध्यकारी हैं?  

4. पिछले अधिकार सिद्धांत (Doctrine of Relation Back):  

   इस सिद्धांत की प्रासंगिकता, जो गोद लिए गए बच्चे के लिए पिछली तिथि से उत्तराधिकार अधिकार बनाता है।  

न्यायालय के अवलोकन  

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू कानून के तहत गोद लेने और संपत्ति अधिकारों से संबंधित कानूनी पहलुओं को स्पष्ट किया:  

1. गोद लेने और संपत्ति अधिकारों पर:  

   हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 12(c) का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि गोद लिया गया बच्चा पूर्व में निहित अधिकारों को समाप्त नहीं कर सकता।  

2. विधवा के स्वामित्व पर:  

   न्यायालय ने कहा कि पार्वतीबाई को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) के तहत संपत्तियों पर पूर्ण स्वामित्व प्राप्त था, जिससे उन्हें संपत्ति को हस्तांतरित करने का पूर्ण अधिकार मिला, भले ही बाद में उन्होंने महेश को गोद लिया हो।  

READ ALSO  बच्चे के बालिग होने पर पिता की जिम्मेदारियां खत्म नही हो जाती:- दिल्ली हाई कोर्ट

3. लेनदेन की वैधता पर:  

   – बिक्री विलेख (अनुसूची A): बिक्री वैध पाई गई और इसे महेश पर बाध्यकारी माना गया, क्योंकि यह विधिवत और विचाराधीन आधार पर की गई थी।  

   – उपहार विलेख (अनुसूची B और C): उपहार विलेख को अमान्य घोषित किया गया, क्योंकि इसमें कब्जा सौंपने और स्वीकार करने की आवश्यक प्रक्रिया का अभाव था।  

फैसला  

सुप्रीम कोर्ट ने मिश्रित निर्णय दिया:  

1. बिक्री विलेख (अनुसूची A):  

   न्यायालय ने इसे वैध ठहराया, यह पुष्टि करते हुए कि पार्वतीबाई को संपत्ति हस्तांतरित करने का पूर्ण अधिकार था।  

2. उपहार विलेख (अनुसूची B और C):  

   उपहार विलेख को अमान्य घोषित कर दिया गया, और इन संपत्तियों पर महेश को उत्तराधिकारी घोषित किया गया।  

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles