इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार करते समय कोई भी प्रशासनिक अधिकारी पंजीकृत दत्तक विलेख (Registered Adoption Deed) की वैधता की जांच नहीं कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 16 के तहत, पंजीकृत दत्तक विलेख को तब तक वैध माना जाएगा जब तक कि उसे सक्षम सिविल कोर्ट द्वारा खारिज न कर दिया जाए।
न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने शानू कुमार (दत्तक पुत्र) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता ने नगर आयुक्त, लखनऊ के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत उनकी अनुकंपा नियुक्ति की मांग को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि गोद लेने के समय उनकी आयु कानूनन स्वीकार्य सीमा से अधिक थी।
कोर्ट ने नगर निगम के अस्वीकृति आदेश को रद्द करते हुए कहा कि प्रशासनिक अधिकारी विवादित तथ्यों के आधार पर पंजीकृत दत्तक विलेख को अवैध नहीं ठहरा सकते।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता शानू कुमार मृतक कर्मचारी रमेश के दत्तक पुत्र हैं। रमेश नगर निगम, लखनऊ में स्वीपर (चतुर्थ श्रेणी) के पद पर कार्यरत थे और उनका सेवाकाल के दौरान निधन हो गया था। पिता की मृत्यु के बाद, शानू कुमार ने उत्तर प्रदेश रिक्रूटमेंट ऑफ डिपेंडेंट्स ऑफ गवर्नमेंट सर्वेंट्स डाइंग इन हार्नेस रूल्स, 1974 के तहत अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में 6 सितंबर, 2012 का पंजीकृत दत्तक विलेख प्रस्तुत किया।
जब विभाग ने उनके दावे पर कोई निर्णय नहीं लिया, तो उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली। कोर्ट के आदेश पर नगर आयुक्त ने मामले पर विचार किया और 2 सितंबर, 2023 को उनका आवेदन खारिज कर दिया।
विभाग का तर्क था कि 2 अगस्त, 2019 को जारी आयु प्रमाण पत्र के अनुसार याचिकाकर्ता की उम्र 25 वर्ष थी। इस हिसाब से दत्तक विलेख की तारीख (6 सितंबर, 2012) पर उनकी उम्र 18 वर्ष रही होगी। विभाग ने निष्कर्ष निकाला कि 18 वर्ष की आयु में गोद लेना हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के खिलाफ है, इसलिए दत्तक विलेख मान्य नहीं है।
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता श्री अरविंद कुमार विश्वकर्मा ने तर्क दिया कि दत्तक विलेख एक पंजीकृत दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि जब तक दत्तक विलेख को किसी सक्षम न्यायालय द्वारा रद्द या शून्य घोषित नहीं किया जाता, तब तक याचिकाकर्ता का मृतक कर्मचारी के दत्तक पुत्र के रूप में दर्जा बरकरार रहेगा।
वकील ने कहा कि किसी भी प्रशासनिक अधिकारी को पंजीकृत दत्तक विलेख की वैधता पर सवाल उठाने या उसे अमान्य मानने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार क्षेत्र केवल सिविल कोर्ट के पास है।
वहीं, प्रतिवादी पक्ष की ओर से अधिवक्ता श्री नमित शर्मा और श्री कृष्ण कुमार पांडेय ने याचिका का विरोध किया। हालांकि, जैसा कि फैसले में नोट किया गया है, वे इस कानूनी तर्क का खंडन नहीं कर सके कि प्रशासनिक क्षमता में कार्य करते हुए नगर आयुक्त के पास पंजीकृत विलेख की वैधता परीक्षण करने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट का विश्लेषण
न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह ने मामले में मुख्य कानूनी प्रश्न तय किया: “क्या प्रशासनिक प्राधिकारी, मृतक कर्मचारी के कानूनी वारिस के नियुक्ति दावे पर विचार करते समय, पंजीकृत दत्तक विलेख की वैधता का परीक्षण कर सकता है?”
कोर्ट ने अधिनियम की धारा 12 का हवाला दिया, जो यह प्रावधान करती है कि गोद लिया गया बच्चा गोद लेने वाले परिवार का ही बच्चा माना जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिनियम में प्रयुक्त “सभी उद्देश्यों के लिए” (for all purposes) वाक्यांश में 1974 के नियमों के तहत अनुकंपा नियुक्ति का दावा भी शामिल है।
कोर्ट ने अधिनियम की धारा 16 पर विशेष जोर दिया, जो पंजीकृत दस्तावेजों के संबंध में उपधारणा (presumption) प्रदान करती है। कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
“यह तय कानून है कि किसी दस्तावेज के पंजीकरण के बाद, उसे गलत साबित करने या रद्द करने का अधिकार केवल सिविल कोर्ट के पास है। यदि कोई पंजीकृत दस्तावेज किसी प्रशासनिक अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो उस अधिकारी का अधिकार क्षेत्र केवल उसकी वास्तविकता (कि वह पंजीकृत है या नहीं) की जांच तक सीमित है। लेकिन, पंजीकृत विलेख की सामग्री के आधार पर उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसे सक्षम सिविल कोर्ट द्वारा रद्द न कर दिया गया हो।”
कोर्ट ने कहा कि यदि प्रशासनिक अधिकारियों को विवादित तथ्यों के आधार पर पंजीकृत दस्तावेजों को नकारने की अनुमति दी गई, तो ऐसे दस्तावेजों के पंजीकरण का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। यदि अधिकारी को संदेह है, तो सही रास्ता सिविल कोर्ट में चुनौती देना है, न कि उसे खुद अमान्य घोषित करना।
विधायिका की मंशा पर प्रकाश डालते हुए कोर्ट ने कहा:
“संभवतः विधायिका के दिमाग में यह बात थी कि यदि कोई प्रशासनिक स्तर पर दत्तक विलेख को गलत साबित कर देता है, तो जिस बच्चे को गोद लिया गया है और जिसने अपने नैसर्गिक परिवार (माता-पिता) की संपत्ति में अपने सभी अधिकार और हित खो दिए हैं, उसका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा, यदि उसे सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती।”
निर्णय
हाईकोर्ट ने 2 सितंबर, 2023 के अस्वीकृति आदेश को कानून की नजर में टिकाऊ न मानते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने नगर निगम, लखनऊ को निर्देश दिया कि वह इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने के दो महीने के भीतर, 1974 के नियमों और कोर्ट की टिप्पणियों के आलोक में याचिकाकर्ता की नियुक्ति के मामले पर नए सिरे से निर्णय ले।
याचिका स्वीकार कर ली गई।
केस विवरण
- केस टाइटल: शानू कुमार (दत्तक पुत्र) बनाम नगर आयुक्त (कमिश्नर) नगर निगम लखनऊ व अन्य
- केस नंबर: रिट-ए नंबर 493 ऑफ 2024
- पीठ: न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह
- याचिकाकर्ता के वकील: अरविंद कुमार विश्वकर्मा
- प्रतिवादी के वकील: नमित शर्मा, कृष्ण कुमार पांडेय

